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कारण वस्त्ररूप परिग्रहसे उनका छुटकारा नहीं होता। अतएव उनके महामत होना असंभव है।
पांचवें:-ध्यान करते समय यदि कोई दुष्ट पुरुष स्त्रियोंके गुप्त अंगोंको छू ले तो उसी समय उनके मनमें विकार उत्पन्न होकर ध्यान छूट जाता है । इस कारण स्त्रियोंके अपने शारीरिक अंगोंके कारण निश्चल ध्यान भी नहीं बन सकता।
इत्यादि अनेक दोष आ जानेके कारण स्त्रियों का शरीर मोक्षप्राप्तिका बाधक कारण है इसलिये उन्हें मुक्ति मिलना असंभव है।
सारांश. ऊपर बतलाये हुए कारणों से श्वेताम्बर सम्प्रदायका कथन असत्य प्रमाणित होता है क्योंकि ज्ञान, चारित्र, शक्ति, शुचिता भादि जिस किसी दृष्टिसे भी विचार करते हैं यह ही सिद्ध होता है कि स्त्रीको महावत, शुक्लध्यान होना, यथाख्यात चारित्रकी प्राप्ति तथा मोक्षका मिलना असंभव है। इस स्त्रीमुक्तिके विषयमें श्री शुभचन्द्राचार्य यों लिखते
स्त्रीणां निर्वाणसिद्धिः कथमपि न भवेन्सत्यशौर्याद्यभावात मायाशौचप्रपंचान्मलभयकलुषानी चजातेग्शक्तः । साधूनां नत्यभावप्रालचरणताभावतः पुरुषतोन्य भाशद्धिमांगकत्वात्सकलविमलसद्धयानहीनत्वतश्च ॥
अर्थात- स्त्रियों में सत्य, शु ता आदि गुणों का अभाव होता है। मायाचार, अपवित्रता उनमें अधिकतर पाई जाती है । रज मल, भय
और कलुषता उन्मं सदा रहती है, उनकी जाति नीच होती हैं, उनमें उत्कृष्ट बल नहीं होता. साधु उनको नमस्कार नहीं करते, उत्कृष्ट चारित्र उनके नहीं होता है, वे पुरुषों से भिन्न स्वभावाली होती हैं, उनमें संपूर्ण निर्मल ध्यानकी हीनता होती है। इस कारण स्त्रियोंको कदापि मुक्ति नहीं हो सकती ।
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