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( ३६ ) उत्पन्न होकर बारहवें (दिगम्बरी सिद्धान्त से सोलहवें ) स्वर्ग तक जाती हैं उसके आगे ग्रैवेयक अनुत्तर आदि विमानों में नहीं जाती हैं। देखिये प्रवचनसारोद्धार चौथा भागके ७८ वें पृष्ट पर लिखा है।
उबाओ देवीण कप्पदुग जा परो सहस्सारा।
गमणागमण नच्छी अच्चुय परओ सुराणपि ॥१६॥ यानी-दवियोंकी उत्पत्ति सौधर्म ऐशान स्वर्गों में ही होती है । अपरिगृहीता देवियां अपने अपने नियोगके अनुसार अच्युत स्वर्ग तक देवोंके साथ रहती हैं उससे ऊपर नहीं । सहस्रार स्वर्ग तक की देवीं मध्यलोक आदिमें आती जाती हैं। और देव अच्युत स्वर्ग तकके आते जाते हैं । उससे ऊपर वाले देव अपने विमानों के सिवाय अन्य कहीं नहीं जाते हैं।
इससे यह सिद्ध हुआ कि स्त्रियोंके शरीर में वह शक्ति नहीं होती है जिसके कारण वे अच्युत स्वर्गसे आगे कल्पातीत विमानों में जाकर उत्पन्न हो सकें । इसीसे यह भी सिद्ध होता है कि निश्चल रूपसे घोर, उत्कृष्ट तपश्चरण करनेका कारणभूत वज्रऋषभनाराच संहनन ( कर्मभूमिज स्त्रियों के नहीं होता है। इसी कारण वे उतना कठिन तप नहीं कर पाती जिससे २२ सागरसे अधिक आयु वाले (स्त्रीलिंग छेद कर ) पुरुषलिंग प्राप्त करनेकी अपेक्षा देवोंमें उत्पन्न हो सके। ___ स्वर्गों में उत्कृष्ट आयु देवोंकी ही होती है, देवियों की नहीं । अच्युत स्वर्गमें जो उत्कृष्ट आयु २२ सागरकी है वह पुरुषलिंगधारी देवोंकी ही है । स्रोलिंग धारी देवियोंकी उस अच्युत स्वर्गमें उत्कृष्ट आयु केवल ५५ पचपन पत्यकी ही होती है । ऐसा ही प्रवचनसारोद्धार चौथा भागके ७९ वें टष्ठ पर लिखा है- अच्चुय देवाण पणना ॥ १७३ ॥
यानी--अच्युत स्वर्गवासी देवोंकी देवियोंकी आयु ५५ पचपन पत्यकी होती है।
इससे भी यह प्रमाणित होता है कि स्त्रियों का शरीर उतना अधिक वल धारक नहीं होता जिसके द्वारा कठिन तपस्या करके देवगतिम उच्च पद तथा उतष्प आयुका बंध किया जा सके।
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