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परीषहके अनुसार डांस, मच्छर आदि कष्ट देते रहते हैं, कोई उन्हें बचाता नहीं है ? चर्या, शय्या परीषहके अनुसार क्या केवली भगवान् को चलने और लेटने का कष्ट सहना पडता है ? वध परीषहके अनुसार क्या कोई दुष्ट मनुष्य, देव, तिर्यञ्च उन्हें आकर मारता भी है ? रोग परीषद क्या उनके शरीर में रोग पैदा कर देती है ? तृणस्पर्श परीषह के निमित्तसे क्या उनके हाथ पैरोंमें तिनके, कांटे आदि चुभते रहते हैं; और क्या मल परीषद उनके शरीरपर मैल उत्पन्न करके केवली को दुख देती रहती है ।
इन दुखके दूर करनेका भी कोई प्रबन्ध सोचा होगा । यदि केवलीके उक्त ९ परीषहोंके द्वारा ९ प्रकारके कष्ट होते हैं तो उनके निवारणका उपाय क्या होता है ? यदि इन ९ परीषदोंका कष्ट केवलीं महागजको होता ही नहीं तो क्षुधा, सुवाका ही क्यों कट उन्हें अवश्य होना माना बाय ?
इसी कारण स्वर्गीय कविवर पं. द्यानतरायजीने एक सवैया में कहा है
भूख लगे दुख होय, अनन्तसुखी कहिये किमि केवलज्ञानी । खात विलोकत लोकालोक देख कुद्रव्य भवे किमि ज्ञानी ॥ खायके नींद करें व जीव, न स्वामिके नींदकी नाम निशानी, केवल कवलाहार करें नहिं सांची दिगम्बर ग्रंथकी वानी ।
यानी— भूख लगनेवर बहुत दुःख होता है फिर भूख लाने से केवलज्ञानी अनंतसुख कैसे हो सकते हैं ? तथा कंवली भगवान भोजन करते हुए भी समस्त होक, अलोकको स्पष्ट देखते हैं फिर वे मल, मूत्र रक्त, पीव आदि अपवित्र घृणित लोकके पदार्थोंको देखकर भोजन कैसे कर सकते हैं? एवं भोजन करने के पीछे सभ कोई आराम करने के लिये सोया करते हैं किन्तु केवलज्ञानी स्रोते नहीं । इस कारण " केवली भगवान् के कवलाहार नहीं है " यह कथन दिगम्बर जैनग्रंथों में है वह बिल्कुल ठीक है ।
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