________________
( ३२ )
-
स्त्रीमुक्तिपर विचार. क्या स्त्रीको केवलज्ञान होता है ? अव यह प्रश्न उपस्थित होता है कि कर्म कलंक मेटकर केवली पद अथवा मुक्तिपद केवल पुरुष ही प्राप्त कर सकता है या बी भी मोक्ष पा सकती है?
सामने माये हुए इसका उत्तर दिगम्बर संप्रदाय तो यह देता है कि इतिपद मथग केवडीपद पुरुष [ न्यद ) ही प्राप्त कर सकता है। बीजिंग ( द्रन्यवेव से मोक्षकी या केवलज्ञानकी प्राप्ति वहीं होती ।
इसी प्रश्नके उत्तरमें श्वेतांवर स्था कवामी मम्प्रदायका कहना यह है कि पुरुष और सी दानों समान हैं । जिस कार्यको पुरुष कर सकता है उस कार्यको बी भी कर सकती है : इस कारण मोक्ष या केवलज्ञान पुरुषके समान भी प्राप्त कर सकती है।
इस कारण यहां इस विषयका निर्णय करते हैं कि मी (द्रव्यवेदी पानी-सी शरीर धारण करनेवाली ) अपने उसी स्त्री शरीर से मुक्ति प्राप्त कर सकती है या नहीं। .. तदर्थ-प्रथम ही यदि शक्तिकी अपेक्षासे विचार किया माय तो श्रीके भरीरमें मुक्ति प्राप्त करने योग्य यह शक्ति नहीं पायी जाती है जो कि पुरुषके शरीरमें पायी जाती है। इस कारण पुरुष तो घोर, कठिन तपस्या करके कर्मजंजाल काट कर मुक्तिपद प्राप्त कर सकता है। किन्तु सी उतनी ऊंची कठिन तपस्यातक पहुंच नहीं सकती भसध परीषहोंका निश्चल रूपसे सामना करके शुक्लध्यान प्राप्त नहीं कर सकती । अतएव उसे मोक्ष मिलना असंभव है । ... औदारिक शरीरमें शक्तिकी हीनता अधिकताका निश्चय संहननोंके अनुसार होता है। जिस शरीरमें मतना ऊंचा संहनन (हड्डि. मोका बंधन ) होता है उस शरीरमें बल भी उतना बड़ा होता है मौर जिस शरीरका नितना हीन संहनन होता है उस शरीरका बल
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com