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यदि हम आत्मा को आत्मा मानते हैं तो हम अन्तरात्मा हैं। यदि हमने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया है तो हम परमात्मा हैं।
हमारा अधिकतर भूतकाल 'बहिरात्मा' अवस्था में गया । हमारा वर्तमान 'अन्तरात्मा' होना चाहिये और हमारा भविष्यकाल 'परमात्मा' होना चाहिये ।
* थर्मोमीटर ज्वर नापने के लिए है, अलमारी को सुशोभित करने के लिए नहीं । आगम आत्मा का अवलोकन करने के लिए हैं, अलमारी को सुशोभित करने हेतु नहीं ।
देहाध्यास देह प्रदान करता है । भगवदध्यास भगवान को प्रदान करता है । देहाध्यास देह को ही प्रदान करता है अर्थात् जन्म-मरण के फेरे चलते ही रहेंगे । जब तक देह में आत्मबुद्धि होगी, तब तक देह प्राप्त होती ही रहेगी । प्रत्येक जन्म में देह प्राप्त होती ही रहती है । यदि देह- अध्यास मिटे, आत्मा को जान सकें, तो ही 'आत्मा' प्राप्त होती है, ‘परमात्मा' प्राप्त होते हैं ।
* दिनभर में साधु सात बार चैत्यवन्दन करते हैं, यह भक्तियोग की प्रधानता स्पष्ट करता है । चैत्यवन्दन भाष्य भक्तियोग के मन्दिर का प्रथम सोपान है ।
चैत्यवन्दन भगवान के साथ वार्तालाप की कला है । इतना ही नहीं, स्वयं भगवान (परमात्मा) बनने की कला है ।
. आवश्यक नियुक्ति में 'चउहि झाणेहिं' में ध्यान-विचार तथा पंचवस्तुक में 'स्तव परिज्ञा' ये दो ग्रन्थ हरिभद्रसूरिजी की अमूल्य भेंट है।
. कर्म साहित्य बाद में जानो । प्रथम देव-गुरु एवं धर्म को जानो ।
देव को जानने के लिए चैत्यवन्दन भाष्य ।
गुरु को जानने के लिए गुरु-वन्दनभाष्य । धर्म (तप) को जानने के लिए पच्चक्खाण भाष्य ।
तीन भाष्यों के बाद कर्म-ग्रन्थ के अध्ययन की हमारी पद्धति का रहस्य यह हैं ।
कहे कलापूर्णसूरि - १ *****
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