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यहाँ यह कहा गया है कषाय का सम्बन्ध मुख्यतः मोहनीय कर्म से है । इसके दोनो भेद अर्थात् दर्शनमोह और चारित्रमोह कषाय से सम्बन्धित है। दर्शनमोह का सम्बंध अन्नतानुबंधी कषाय चतुष्क से है और चारित्र मोहनीका सम्बंध अनन्तानुबन्धी, अप्रत्याख्यानीय, प्रत्याख्यानीय और संज्वलन कषाय चतुष्क से है ।
"चारित्रमोहनीय के प्रमुख दो भेद है - कषायमोहनीय और नोकषायमोहनीय । "81 कषाय के मोहनीय के अन्तर्गत क्रोध, मान, माया और लोभ आते हैं और हास्य, शोक, रति- अरति, भय, जुगप्सा तथा स्त्री-पुरुष और नपुंसक की कामवासना नोकषाय मोहनीय है । ये कषायों के कारण या कार्य होते हैं । कषाय की तीव्रता व मन्दता के आधार पर ही कषाय को चार भागों में विभाजित किया गया है (1) अनन्तानुबन्धी (2) प्रत्याख्यानीय (3) अप्रत्याख्यान (4) संज्वलन | इन चारों को चार कषाय में घटाया गया है, इस प्रकार कषाय के सोलह भेद कहे गए है । तत्वार्थसूत्र टीका में इसे इस प्रकार कहा गया है - "क्रोध, मान, माया और लोभ ये कषाय के मुख्य चार भेद है। तीव्रता के तरतमभाव की दृष्टि से प्रत्येक के चार-चार प्रकार है। 2
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अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया और लोभ है । अप्रत्याख्यानीय
क्रोध, मान, माया और लोभ । इसी प्रकार प्रत्याख्यानीय एवं संज्वलन के भी चार-चार भेद करने पर कषाय मोहनीय के सोलह भेद होते है। हास्य, रति, अरति शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरूषवेद व नपुंसकवेद – ये नोकषाय मोहनीय के नवभेद है । प. फूलचंदजी शास्त्री की टीका में इन्हें अकषायवेदनीय और कषायवेदनीय कहा गया है।' हास्य आदि नवभेद अकषायवेदनीय के हैं एवं कषायवेदनीय के सोलह भेद हैं 1
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'तत्वार्थसूत्र टीका
82 तत्वार्थसूत्र टीका
83 सर्वार्थसिद्धी
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उपाध्याय श्री केवलमुनि पृ. 369
पं. सुखलाल संघवी पृ. 198
अध्याय
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8 पृ. 301
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