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व्यर्थ है। 22 मोक्ष अथवा तनावमुक्ति के लिए आध्यात्मिक ज्ञान ही श्रेष्ठ है। आध्यात्मिक ज्ञान के अभाव में व्यक्ति तनावपूर्ण जीवन जीता है। उसे इस बात का भान भी नहीं होता कि उसके तनाव के कारण आखिरकार हैं क्या ? आध्यात्मिक ज्ञान ही सम्यक् ज्ञान है और इस ज्ञान के होने पर व्यक्ति स्वयं ही तनावों के कारणों को जान लेता है, समझता है और उनका निराकरण भी करता है। सम्यक्ज्ञान से ही आत्म-बोध होता है, स्व का साक्षात्कार होता है। जो विकल्प या विचारशून्यता की अवस्था है, विकल्पशून्यता की अवस्था ही तनावमुक्ति की अवस्था है। ज्ञान की यह निर्विकल्प अवस्था ही मोक्ष है और मोक्ष पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था है। हम यह भी कह सकते हैं कि पूर्णज्ञान या केवलज्ञान तनावमुक्ति की अवस्था है। साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि तनावमुक्ति होने पर ही मोक्ष होता है। आचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं कि -"जो सर्वनयों (विचार-विकल्पों) से शून्य है, वही आत्मा है और वही केवलज्ञान और केवलदर्शन से युक्त कहा जाता है। 23 केवलज्ञान वाला मोक्ष को प्राप्त करता है। आत्मस्वरूप का चिन्तन करना एवं आत्मा, अनात्मा का विवेक कर राग आदि तनावों के कारणों से बचने के लिए व्यक्ति का ज्ञान सम्यक होना आवश्यक है। 'भक्तपरिज्ञा' में कहा गया है –“जैसे धागा पिरोयी हुई सुई कचरे में गिर जाने पर भी खोती नहीं है, वैसे ही ससूत्र अर्थात् शास्त्रज्ञान से युक्त जीव संसार में पड़कर भी नष्ट नहीं होता। 24 ठीक इसी प्रकार सम्यग्ज्ञान प्राप्त किया हुआ व्यक्ति कभी भी अपने तनावमुक्ति के लक्ष्य से च्युत नहीं होता और तनावमुक्ति पाकर ही रहता है।
ज्ञान ही व्यक्ति को आत्म-अनात्म का विवेक सिखाता है। जो 'स्व' एवं 'पर' के स्वरूप को जान लेता है, स्व को जानकर 'पर' पदार्थों के प्रति ममत्व भाव नहीं रखता है, वही मुक्त होता है। यहाँ हम यह भी कह सकते हैं, कि
22 ज्ञानसार - 5/2
समयसार – 144 24 भक्त परिज्ञा - 86
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