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2. वास्तु - मकान, दुकान आदि। 3. हिरण्य - चांदी के सिक्के, आभूषण आदि । 4. स्वर्ण – स्वर्णमुद्रा या स्वर्ण निर्मित वस्तुएँ आदि । 5. धन -- हीरे, पन्ने, माणक, मोती आदि। 6. धान्य - गेहूँ, चावल, मूंग आदि। 7. द्विपद - नौकर--नौकरानी, दास-दासी आदि। 8. चतुष्पद - गाय, भैंस आदि चार पैर वाले पशु। 9. कुप्य - घर-गृहस्थी का सामान
आभ्यांतर परिग्रह के 14 भेद बताए गए हैं - मिथ्यात्व, राग, द्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा और वेद (काम-वासना)।
___परिग्रह की सत्ता ममत्ववृत्ति आदि पर निर्भर है। ममत्ववृत्ति, आसक्ति या मूर्छाभाव ही परिग्रह है। आचारांग में कहा गया है" -
___ "जे ममाइ मई जहाई, से चयइ ममाइयं,
से हु दिट्ठपहे मुणि जस्स नत्थि ममाइयं' जो व्यक्ति ममत्वभाव का परित्याग करता है, वह स्वीकृत परिग्रह का त्याग कर सकता है। ममत्वबुद्धि बाह्य वस्तुओं के प्रति व्यक्ति की ग्रहणबुद्धि रूप है। ग्रहण बुद्धि कहीं न कहीं इच्छा या ममत्व रूप ही होती है और जहाँ इच्छा है, वहाँ तनाव है। अतः परिग्रह के साथ तनाव जुड़ा हुआ है। यदि तनावों से मुक्त होना है तो परिग्रह से मुक्त होना होगा। यहाँ हमें वस्तु के उपयोग और परिग्रह का अन्तर समझ लेना आवश्यक है।
उपयोग - किसी वस्तु का भोग व उपभोग करना उपयोग है।
37 आचारांगसूत्र प्रथम श्रुतस्कंध - 2/6/99
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