Book Title: Jain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Trupti Jain

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Page 325
________________ विभिन्न क्षेत्रों में अनेकांतवाद की उपयोगिता 1. अनेकांतवाद धार्मिक क्षेत्र में सभी धर्मों का मूल लक्ष्य एक ही है मोक्ष प्राप्त करना । भक्त से - भगवान् बनना । अन्तर केवल इतना है कि रास्ते अलग-अलग हैं, किन्तु उन रास्तों पर चलने की प्रक्रिया भी एक ही है । वह है राग, आसक्ति, अहं एवं तृष्णा को समाप्त करना । फिर भी एकान्तवादी वैचारिकता आज हिंसा, कलह, अशांति एवं वैश्विक तनाव कर कारण बन गई है। प्राचीन समय से ही धर्म के नाम पर मानव मानवता को ही खत्म करता आ रहा है। डॉ. सागरमलजी जैन ने बड़े ही सुन्दर शब्दों में लिखा है - "धर्म मनुष्य को मनुष्य से जोड़ने के लिए था, लेकिन आज वही धर्म मनुष्य - मनुष्य में विभेद की दीवारें खींच रहा है। 62 वस्तुतः धर्म विश्वशांति और मानव जाति में सहयोग व प्रेम भावना जाग्रत करने के लिए है, किन्तु धार्मिक मतान्धता के कारण धर्म के नाम पर हिंसा, कलह एवं अत्याचार हो रहा है इसके कई उदाहरण हमारे समक्ष आए हैं। जैसे अयोध्या मंदिर का विवाद, मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि का विवाद व मुस्लिम दरगाह की एक दीवार का विवाद आदि । i - प्राचीन समय में ऐसे कई विवाद रहे थे, जिन्हें अनेकांत दृष्टि से ही समाप्त किया गया था। हर व्यक्ति अपने धर्मदर्शन को सही व अन्य धर्मदर्शनों को मिथ्या मानता है । जब भी किसी बात को लेकर कोई विवाद खड़ा होता है तो वहाँ तनावग्रस्त माहौल बन जाता है। ऐसी स्थिति में अनेकांत दृष्टि ही उन दोनों वर्गों के बीच सामंजस्य बना सकती है । अनेकांतदृष्टि दो धर्मों या तथ्यों को एक नहीं करती है, वस्तुतः वह उनके सम्बन्ध में हमारी सोच को सम्यक् बनाती है। 62 अनेकान्तवाद, स्याद्वाद और सप्तभंगी (सिद्धांत और व्यवहार) - डॉ. सागरमल जैन, पृ.39 Jain Education International 306. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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