Book Title: Jain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Trupti Jain

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Page 353
________________ 334 बदलना प्रकृति का नियम है और यह शाश्वत नियम भी है। समय, शक्ति, कार्य करने की क्षमता, पुरुषार्थ में कमी आदि सभी प्रतिक्षण बदलते रहते हैं। इस प्रकार व्यक्ति का स्वभाव भी बदलता है, उसके भाव भी परिवर्तित होते रहते हैं। कभी अशुभ लेश्या से शुभ लेश्या में और कभी शुभ लेश्या से अशुभ लेश्या में परिवर्तित होता रहता है। लेश्या (मनोवृत्ति) का यह परिवर्तन व्यक्ति के व्यवहार एवं स्वभाव में भी परिवर्तन कर देता है। लेश्याओं बदलाव की प्रक्रिया में लेश्या-ध्यान सशक्त भूमिका निभाता है। लेश्या और ध्यान में गहरा सम्बन्ध है। जब व्यक्ति आर्तध्यान और रौद्रध्यान में होता है तो अशुभ लेश्या होती है और जब धर्मध्यान और शुक्लध्यान होता है तो शुभ लेश्या होती है। अशुभ विचार एवं कुत्सित व्यवहार अशुभ लेश्या को जगाते हैं और शुभ विचार एवं सम्यक् व्यवहार शुभ लेश्या को जगाते हैं, अतः “व्यक्तित्व परिष्कार का महत्त्वपूर्ण सूत्र –लेश्या का विशुद्धिकरण है।118 ___ लेश्या-ध्यान का सिद्धांत रंगों पर आधारित है। मनोवैज्ञानिकों का यह मानना है कि रंग एक माध्यम है हमारे विचारो, आदर्शों, संवेगों, क्रियाओं और अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने का। फेबर बिरेन (Faber Birren) रंग रूचि को संवेदन, ज्ञान और चिन्तन का परिणाम मानते हैं। साउथआल (Southall) का मानना है कि -"रंग न तो चमकदार वस्तु का गुण है और न ही चमकदार विकिरण का, यह सिर्फ चेता का विषय है। 119 जैन दर्शन में आध्यात्मिक अशुद्धि का हेतु भावों के साथ कर्म वर्गणाएँ भी मानी गई हैं। जैनदर्शन के अनुसार कर्म वर्गणाएँ पौद्गलिक हैं और पुद्गल में वर्ण, गंध, रस और स्पर्श पाए जाते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि पौद्गलिक कर्मों का प्रभाव हमारी आध्यात्मिक विशुद्धि पर भी पड़ता है। कर्मों की जितनीजितनी निर्जरा होती है, उतनी-उतनी आत्मा विशुद्ध होती है। इससे यह सिद्ध ॥ लेश्या और मनोविज्ञान - कु. शांता जैन, पृ. 197 119 Faber Birren, Colour Psychology and colour Therapy. P. 184 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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