Book Title: Jain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Trupti Jain

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Page 367
________________ 34? किन्तु नवीन इच्छा के जन्म से मन तो शीघ्र ही अतृप्त और अशान्त हो जाता है। अतृप्त मन ही तनावग्रस्त होता है, अतः तनावमुक्ति का एकमात्र साधन आध्यात्मिक विकास द्वारा चित्त निर्विकल्प स्थिति ही है। इस प्रथम अध्याय में यह भी बताया गया है कि आज तनाव प्रबंधन के लिए आध्यात्मिक प्रबंधन की आवश्यकता हैं, क्योंकि जैनदर्शन में तनाव का मुख्य कारण राग-द्वेष एवं कषाय माने गये हैं। आचारांगसूत्र में कई स्थानों पर यह कहा गया है कि संसार के परिभ्रमण एवं दुःख (तनाव) का कारण राग-द्वेष एवं कषाय हैं। उत्तराध्ययनसूत्र में कषाय को अग्नि की उपमा दी गई है, जो आत्मा के सद्गुणों को जलाकर नष्ट कर देती है। व्यक्ति के संतोष, सरलता आदि सद्गुण ही उसके जीवन में शांति स्थापित करते हैं और इनके अभाव में व्यक्ति तनावग्रस्त हो जाता है। तत्त्वार्थसूत्र और उसकी टीकाओं में कषायों का, जो स्वरूप दिया है, उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि तनाव (दुःख) का कारण कषाय या 'पर' के प्रति आसक्ति या ममत्ववृत्ति (राग) ही है। परवर्तीकालीन जैन ग्रंथों में जैसे- प्रशभरति एवं विशेषावश्यकभाष्य आदि में भी विभिन्न नयों के आधार पर राग-द्वेष एवं कषायों का जो सह-सम्बन्ध बताया गया है, उसकी चर्चा भी मैंने इस प्रथम अध्याय में की है। ___ द्वितीय अध्याय में विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर तनावों के कारणों का विश्लेषण किया गया है। इनमें सर्वप्रथम आर्थिक स्थिति को भी तनाव का एक कारण बताया गया है। जैनदर्शन में आर्थिक विपन्नता के साथ-साथ धन-संचय या परिग्रह की वृत्ति को भी दुःख एवं चिंता का हेतु बताया गया है। परिग्रह-वृत्ति परिग्रह करने वाले व्यक्ति को तो तनावग्रस्त बनाती ही है, साथ ही आर्थिक विषमता या गरीबी को भी जन्म देती है। अतः वह गरीब-अमीर दोनों को तनावग्रस्त करती है। साथ ही जो दूसरों के धन को देखकर स्वयं को अभावग्रस्त समझते हैं या ईर्ष्या करते हैं, वे भी तनावग्रस्त होते हैं। व्यक्ति की आसक्ति धन से जुड़ी हुई है, धन उपार्जन करना अनिवार्य भी है, किन्तु व्यक्ति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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