Book Title: Jain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Trupti Jain

View full book text
Previous | Next

Page 369
________________ ___349 के द्वारा नहीं, अपितु परिवार के सदस्यों में पीढ़ीगत भेद, अर्थहीन रूढ़िवादिता आदि के रूप में तनाव के हेतु बनते हैं। विश्व अशांति का एक मुख्य कारण सामाजिक अशांति भी है। वस्तुतः समाज एक अमूर्त कल्पना है। व्यक्तियों द्वारा ही समाज बनता है। जैनदर्शन की अनेकांत दृष्टि के आधार पर कहें तो व्यक्ति और समाज दोनों परस्पर सापेक्ष हैं। यही कारण है कि सामाजिक विषमताएँ भी व्यक्ति में तनाव उत्पन्न करती हैं। प्रत्येक व्यक्ति समाज में अपने मान प्रतिष्ठा को बनाए रखना चाहता है और जब उसके अहं एवं स्वार्थ को कोई चोट पहुंचती है तो वह तनावग्रस्त हो जाता है। इसके अतिरिक्त भी समाज में जाति, धर्म, अमीर, गरीब आदि के नाम पर उत्पन्न भेद-भाव भी व्यक्ति के साथ-साथ समाज में तनाव के कारण बनते हैं। सामाजिक कुरीतियाँ एवं अर्थहीन रूढ़ियाँ भी तनाव का कारण बनती हैं। सिर्फ व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध ही नहीं, अपितु तनाव के कुछ धार्मिक कारणों का भी शोध-ग्रन्थ के इस द्वितीय अध्याय में विश्लेषण किया गया है। जिसके अन्तर्गत धर्म की कुछ रूढ़िगत आचार मर्यादाओं के कारण युवावर्ग व वृद्ध वर्ग के मध्य तनाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है, इसे समझाया गया है। __ तनाव का उद्गम स्थल मन होने से इस द्वितीय अध्याय में तनाव की उत्पत्ति के मनोवैज्ञानिक कारणों का भी उल्लेख किया गया है। मन में उठने वाले विकल्प और विकल्पों से उत्पन्न होने वाली इच्छाएं, आकांक्षाएं, अपेक्षाएं आदि भी व्यक्ति को तनावग्रस्त बना देती हैं, इस द्वितीय अध्याय में इसकी भी चर्चा की गई है। इस प्रकार इस अध्याय में तनाव के विभिन्न कारणों का विश्लेषण किया गया है और इस सम्बन्ध में जैन दृष्टिकोण को भी स्पष्ट किया गया है। प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के तीसरे अध्याय में चैत्तसिक मनोभूमि और तनाव के सह-सम्बन्ध का विश्लेषण किया गया है। इसमें सर्वप्रथम आत्मा, चित्त औन Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387