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प्रचलित है। प्रेक्षा ध्यानविधि के द्वारा मन की चंचलता को समाप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। ध्यान की यह विधि पाँचवें अध्याय में दी गई है। यहाँ ध्यान के महत्त्व को समझाते हुए तनावमुक्ति के लिए ध्यान करने का निर्देश दिया गया है।
व्यक्ति की श्रद्धा सबसे अधिक धर्म पर होती है। अगर ध्यान के सही स्वरूप को समझ लिया जाए तो व्यक्ति को यह ज्ञात हो जाता है कि स्वस्वभाव में रहना ही धर्म है। धर्म ही तनावमुक्ति में मार्गदर्शक है।
इस प्रकार मैंने उपरोक्त सातों अध्यायों में जैन दृष्टिकोण के आधार पर तनाव का स्वरूप, उसकी आधारभूमि, उसके कारण, जैनदर्शन की विविध अवधारणाओं से उनका सहसम्बन्ध, उनके प्रबन्धन की तकनीक और उनके निराकरण के उपायों की चर्चा की है और यथास्थान आधुनिक मनोविज्ञान, बौद्ध धर्मदर्शन और प्रबन्धनशास्त्र की तकनीक से जैन दृष्टिकोण की तुलना भी की है
और यह बताया है कि जैन धर्मदर्शन तनावमुक्ति के जो उपाय सुझाता है, वे किस सीमा तक प्रासंगिक हैं।
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