Book Title: Jain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Trupti Jain

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Page 355
________________ 336 के द्वारा शिथिलता का सुझाव देकर पूरे शरीर को शिथिल करना है। पूरे ध्यान-काल तक इस कायोत्सर्ग की मुद्रा को बनाए रखना है, तथा शरीर को अधिक से अधिक स्थिर और निश्चल रखने का अभ्यास करना होगा। (5 से 7 मिनट) द्वितीय चरण - ___ अन्तर्यात्रा - रीढ़ की हड्डी के नीचे के छोर (शक्तिकेन्द्र) से मस्तिष्क के ऊपरी छोर (ज्ञान-केन्द्र) तक सुषुम्ना (Spinal Cord) के भीतर चित्त को नीचे से ऊपर, ऊपर से नीचे घुमाया जाता है। पूरा ध्यान सुषुम्ना में केन्द्रित कर वहां होने वाले प्राण के प्रकम्पनों (Vibrations) का अनुभव किया जाता है। (5 से 7 मिनट) तीसरा चरण - लेश्या-ध्यान - चित्त को आनन्द-केन्द्र पर केन्द्रित कर चमकते हुए हरे रंग का ध्यान करना है। हरे रंग का श्वास लेना है –प्रत्येक श्वास के साथ हरे. रंग के परमाणु भीतर जा रहे हैं - ऐसा अनुभव करना है। 2-3 मिनट बाद कल्पना करना है कि आनन्द-केन्द्र से निकलकर हरे रंग के परमाणु शरीर में चारों ओर फैल रहे हैं तथा पूरा आभामण्डल हरे रंग के परमाणुओं से भर रहा है। 2-3 मिनट पश्चात् भावना के द्वारा अनुभव करना है, भावधारा निर्मल हो रही है। इसी प्रकार विशुद्धि-केन्द्र पर नीले रंग, दर्शन-केन्द्र पर अरूण रंग, ज्ञान-केन्द्र (या चाक्षुष केन्द्र) पर पीले रंग की और ज्योति केन्द्र पर श्वेत रंग का ध्यान किया जाता है। इन केन्द्रों पर ध्यान करने के साथ जो भावना की जाती है, वह इस प्रकार है - Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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