Book Title: Jain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Trupti Jain

View full book text
Previous | Next

Page 335
________________ 316 कषायों का सीधा सम्बन्ध हमारे बाह्य व्यवहार (आचरण) से है। व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण भी उसके कषायजन्य आवेगों से किया जाता है। कषायों के आवेग जितने तीव्र होंगे, उसके मन की अस्थिरता भी उतनी अधिक होगी और व्यक्ति में कषायों की प्रवृत्ति जितनी कम होगी उसका मन उतना ही स्थिर होगा। मन की अस्थिरता व्यक्ति के अशांत होने की अवस्था है। मन की अस्थिरता या चंचलता कभी भी व्यक्ति को संतुष्टि का अनुभव नहीं होने देती है। तनाव ग्रस्तता से मुक्त होने का उपाय है मन को स्थिर करना। मन की स्थिरता कषायों से ऊपर उठने पर ही सम्भव है। जैसे-जैसे कंषायों के आवेग कम होते जाएंगे, मन की स्थिरता बढ़ती जाएगी। जैसे-जैसे मन की स्थिरता बढ़ेगी, व्यक्ति तनावमुक्ति की दिशा में अग्रसर होगा। कषायों का प्रभाव मात्र व्यक्ति के व्यक्त्वि पर ही नहीं वरन् उसके सम्पूर्ण जीवन पर पड़ता है। अगर काषायिक वृत्तियाँ अधिक होंगी, तो व्यक्ति का सारा जीवन तनावग्रस्त बना रहेगा। व्यक्ति में कषाय रूपी वृत्तियाँ जब कम होती हैं तो वह जीवन की तीनों अवस्था -बालअवस्था, युवावस्था व वृद्धावस्था में आनन्द एवं शांति का अनुभव करता है। अतः तनावमुक्ति के लिए या कषाय-विजय के कुछ सूत्र निम्न हैं - क्रोध विजय के उपाय - 1. दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है कि क्रोध को उपशम से नष्ट करो, अर्थात् समभाव से क्रोध को जीतो। 2. क्रोध आने पर जिस व्यक्ति या स्थान पर क्रोध आ रहा है, वहाँ से दूर ___ चले जाएं। 3. क्रोध आने पर स्वयं के क्रोध को देखने का प्रयास करें। अगर इतना ही ख्याल आ गया कि क्रोध आ रहा है, तो उसके दुष्परिणामों का ख्याल भी आ जाएगा, तो क्रोध स्वतः ही चला जाएगा। 8। उवसमेण हणे कोहं। दशवैकालिकसूत्र -8/39 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387