________________
___ 322
5. लोभ विजय के लिए बारह भावनाओं का चिन्तन करें। 6. योगशास्त्र में लोभ विजय का सूत्र बताते हुए कहा है -“लोभरूपी समुद्र
को पार करना अत्यन्त कठिन है। उसके बढ़ते हुए ज्वार को रोकना दुष्कर है, अतः बुद्धिमान पुरुष को चाहिए कि संतोषरूपी बाँध बांधकर
उसे आगे बढ़ने से रोक दे।96 7. लोभी व्यक्ति जब लोभ कषाय से युक्त होता है तो केवल लोभ ही नहीं,
बल्कि मान, माया और क्रोध कषाय भी उस पर हावी हो जाते हैं और चारों कषायों से युक्त व्यक्ति के दुष्परिणामों का चिन्तन कर लोभ पर विजय प्राप्त करने का प्रयत्न करें।
लोभ का प्रतिपक्षी संतोष है, अतः संतोष गुण की साधना करने से ही लोभ पर विजय प्राप्त की जा सकती है। संतोष व्यक्ति के तनावमुक्त होने में एक सहायक तत्त्व है।
दशवैकालिकसूत्र में चारों काषायिक-प्रवृत्तियों पर विजय पाने के उपाय बतलाए गए हैं – क्रोध को क्षमा से, मान को मृदुता (विनयभाव) से, माया का सरलता से और लोभ को संतोष से जीतें।
इन पर विजय पाना ही वास्तव में तनाव पर विजय पाना है, अर्थात् तनावों से मुक्ति पाना है। आचार्य हरिभद्रसूरि ने इसी आशय से कहा है कि -"जब तक इन काषयिक प्रवृत्तियों का क्षय नहीं होगा, उन पर जय प्राप्त नहीं होगी, तब तक मुक्ति संभव नहीं है।
बारह भावना। लोभसागर मुवेलमतिवेलं महामतिः । संतोष सेतुबन्धेन प्रसरन्तं निवारयेत ।। - योगशास्त्र, 4/22 उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे। मायं मज्जभावेण, लोभं संतोसओ जिणे।। -दशवैकालिक कोहं खमया माणं समद्दवेणज्जवेण मायं च। संतोसेण य लोहं जयदि खु ए चहुविहकसाए।।
98 अ)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org