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5. कभी-कभी व्यक्ति स्वयं अपने ही जाल में फँस जाता है, इसलिए कपटप्रवृत्ति को छोड़कर सीधे सरल तरीकों से कार्य करने का प्रयत्न करना चाहिए।
6. माया का प्रतिपक्षी गुण सरलता है । माया तनाव उत्पन्न करती है तो सरलता उसके विपरीत होने के कारण तनावमुक्त करती है। इसलिए अपने जीवन में या स्वभाव में सरलता का विकास करने का प्रयत्न करते रहना चाहिए ।
लोभ - विजय के उपाय
1. शास्त्रों के वचनों पर श्रृद्धा रखनी चाहिए। जैन आगम उत्तराध्ययनसूत्र में पूछा गया है - "लोभ के विजय से जीव को कौन-सा लाभ होता है ? प्रभु ने उत्तर दिया लोभ - विजय से संतोष गुण उत्पन्न होता है । लोभ - विजय से असातावेदनीय कर्म का बंध नहीं होता तथा पूर्वबद्ध कर्म की निर्जरा होती है । "94
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2. लोभ पर विजय प्राप्त करने के लिए इच्छाओं व आंकाक्षाओं को अल्प करने का प्रयास करना चाहिए ।
3. लोभ की पूर्ति एक बार होने पर वह बढ़ता ही जाता है। किसी भी चीज की चाह अति दुष्कर व दुःखदायी होती है, अतः लोभ की वृत्ति को बढ़ने दें I
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4. जितना हमारे पास है, उतने में संतुष्ट होने की भावना होना चाहिए ।
लोभविजयेणं भंते । जीवे किं जणयइ ।
लोभविजएणं संतोसिभावं जणयइ, लोभेवेयणिज्जं कम्मं ने बन्धइ
पुव्वबद्धं च कम्मं निज्जरेइ .
। - उत्तराध्ययनसूत्र - 29/70
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