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सिद्धसेनदिवाकर ने उजागर किया था। उन्होंने कहा था कि -"संसार के एकमात्र गुरु उस अनेकांतवाद को नमस्कार है, जिसके बिना संसार का व्यवहार भी असम्भव है। वास्तव में अगर देखा जाए तो व्यवहार जगत् में अनेकांत ही विरोधों के समाहार का सिद्धांत है। उसके बिना जगत् का व्यवहार नहीं चल सकता। अगर व्यवहार जगत् में अनेकांतिक सोच न अपनाया जाए तो विरोधों को समाहार ही सम्भव नहीं होगा। परिवार हो या समाज, देश हो या विदेश या सम्पूर्ण विश्व में यदि अनेकांतवाद को व्यवहार क्षेत्र में नहीं अपनाया गया तो परिवार ही क्या सम्पूर्ण विश्व तनावग्रस्त बन जाएगा। मानव जाति आपस में ही युद्ध कर-करके समाप्त हो जाएगी। एक औरत जो किसी की भाभी है तो किसी की मामी, किसी की मासी या चाची तो किसी की माँ भी है। इसे हरेक को उसे अपनी-अपनी अपेक्षा से समझना होगा। एकान्तरूप से कोई निर्णय नहीं हो सकता।
एक व्यक्ति के लिए एक ही हेतु तनावमुक्ति का कारण है, किन्तु वही हेतु दूसरे व्यक्ति में तनाव उत्पन्न कर देता है। एक सुन्दर स्त्री जिसकी वह पत्नी है, उसे तनावमुक्त करती है, वही दूसरे व्यक्ति में ईर्ष्या का विषय होकर तनाव का कारण बन सकती है। पुनः वही स्त्री एक समय अपने पति को सुख–सन्तोष देकर तनावमुक्त करती है, तो वही दूसरे व्यक्तियों के आकर्षण का कारण होने से ईर्ष्यावश अपने पति को और आकर्षण के कारण दूसरों को तनावग्रस्त भी बनाती है।
तनाव हमारे जीवन के हर क्षेत्र में उत्पन्न होता है और उन्हीं क्षेत्रों में अगर हम अनेकांत का बीज डाल दे तो सुख व शांति की फसल लहराएगी। अनेकांत विभिन्न क्षेत्रों में तनावप्रबंधन का कार्य करता है।
6। सन्मति-तर्क-प्रकरण - 3/70
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