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अनेकांतदृष्टि को अपनाना आवश्यक होता है। यदि हम उसकी उपेक्षा करते हैं तो सामाजिक व्यवस्था गड़बड़ा जाती है और उसके परिणाम स्वरूप समाज का प्रत्येक सदस्य तनावग्रस्त हो जाता है।
6. पारिवारिक जीवन में अनेकांतवाद - ... .. ..
जिस प्रकार समाज एक समूह है, उसी प्रकार परिवार भी व्यक्तियों का समूह है, जहाँ प्रेम, विश्वास, सहयोग एवं जन्म के आधार पर एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के साथ रिश्ता जुड़ा होता है। ये प्रेम, सद्भावना आदि के गुण परिवार को तनावमुक्त रख शांतिपूर्ण वातावरण बनाए रखती है, किन्तु परिवार के सदस्यों का दृष्टिभेद कुटुम्ब में संघर्ष व कलह उत्पन्न कर देता है। एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के संस्कारों का भेद परिवार में तनाव का माहौल उत्पन्न कर देता है। सास यह अपेक्षा करती है कि बहू ऐसा जीवन जिए जैसा उसने स्वयं बहू के रूप में जिया था, जबकि बहू अपने युग के अनुरूप और अपने मातृपक्ष के संस्कारों से प्रभावित जीवन जीना चाहती है। पिता पुत्र को अपने अनुरूप ढालना चाहता है किन्तु पुत्र अपनी ही सोच के अनुरूप जीवन जीता है। बड़ा भाई छोटे को अपने अनुशासन में रखकर अपनी सोच से व्यवसाय को चलाना चाहता है, तो छोटा अपनी ही बुद्धि को सही मानकर व्यवसाय को अपने तरीके से चलाना चाहता है। इसमें जब तक सहिष्णु दृष्टि और दूसरे की स्थिति को समझने का प्रयास नहीं किया जाता, तब तक परिवार में तनाव की स्थिति बनी रहेगी। वस्तुतः इसके मूल में जो दृष्टिभेद है, उसे अनेकान्त पद्धति से सम्यक् प्रकार से जाना जा सकता है। अनेकान्त दृष्टि परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को एक दूसरे को समझने में सहायक बनती है। हम जब दूसरे के सम्बन्ध में विचार करें, कोई निर्णय ले तो स्वयं अपने को उस स्थिति में खड़ा कर सोचना चाहिए। अपनी बात पर अडिग रहने से पहले दूसरे पहलू पर भी विचार करना चाहिए। यही एक ऐसी दृष्टि है, जिससे परिवार में शांति व प्रेमपूर्ण वातावरण बनता है।
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