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में बाह्य परिग्रहण करने की बुद्धि होती है। "39 इसलिए सर्वप्रथम हमें अपनी संग्रहेच्छा और आसक्तिवृत्ति का त्याग करना होगा ।
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परिग्रह के मूल में कामना होती है और दशवैकालिक में कहा गया है। - "कामे कामहि कमियं खु दुक्खं" 4 कामना ही दुःख का ( तनाव का ) कारण है, अतः हमें अपनी कामनाओं, इच्छाओं और आकांक्षाओं को अल्पतम करना होगा या उनका निरसन करना होगा ।
"त्याग एवं सर्वेषां मोक्ष साधनमुत्तमम् 1 जितने भी मोक्ष के साधन हैं, उनमें त्याग को सर्वोत्तम साधन माना है। इसलिए अपने संचय किए हुए धन या वस्तुओं में से दान देने की अर्थात् त्याग की भावना होनी चाहिए ।
जितना उपयोग में आए उतना ही अपने समीप रखें। इससे संचय किए गए धन के रक्षण से मुक्त हो जाएंगे। दूसरे शब्दों में कहें तो धन के नष्ट या विनाश के भय से मुक्त हो जाएगें ।
अपरिग्रह तनावमुक्ति का साधन है, अतः तनावमुक्ति के लिए परिग्रह वृत्ति का त्याग आवश्यक है ।
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अहिंसा और तनावमुक्ति
दशवैकालिकसूत्र 42 के पहले अध्याय की पहली गाथा है - 'धम्मो मंगलमुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो' अर्थात् अहिंसा संयम और तप रूप धर्म ही सर्वश्रेष्ठ मंगल है। जैनदर्शन में अहिंसा को सर्वोपरि सिद्धान्त माना गया है ।
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व्रत चाहे श्रमण का हो या श्रावक का पहला स्थान अहिंसा को ही दिया गया है । अहिंसा ही जैनधर्म का सार है । अहिंसा का सिद्धांत सिर्फ व्यक्ति या
39 भगवती आराधना - 19/12
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• दशवैकालिकसूत्र
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'अणु से पूर्ण की यात्रा
'दशवैकालिकसूत्र - 1/1
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