Book Title: Jain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Trupti Jain

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Page 318
________________ .. 299 कहता है। भय के कारण ही माया भी करता है तो भय के कारण ही क्रोधी व दुःखी भी होता है। अतः भय से मुक्त होने पर भी हिंसा से मुक्त हो सकते हैं। कहा गया है कि -दूसरों को भय से मुक्त करो क्योंकि भय से हिंसा जन्म लेती है और अभय से अहिंसा। अनेकांत का सिद्धांत - "जेण विणा लोगस्य ववहारो सव्वहा ण निव्वडइ। तस भुवणेक्कागुरूणो, णमो अणेगंतवायस्स।। सन्मति-तर्क प्रकरण -3/70 अर्थात् जिसके बिना लोक-व्यवहार का निर्वहन भी सर्वथा सम्भव नहीं है या जिसके बिना जगत् का व्यवहार नहीं चलता, उस अनेकांतवाद को मैं नमस्कार करता हूँ। इस प्रकार हम देखते हैं कि अनेकांतवाद एक व्यावहारिक दर्शन है। यह संसार व्यवहार से चलता है और व्यक्ति का व्यवहार ही व्यक्ति की मानसिकता का या तो विकास करता है या उसे संकुचित कर देता है। व्यक्ति के व्यवहार से उसमें तनाव की उत्पत्ति होती है और तनाव से ही व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होता है। आज राष्ट्र हो या प्रांत, समाज हो या परिवार, व्यष्टि हो या समष्टि सभी में पारस्परिक मतभेद दिखाई देता है। प्रत्येक व्यक्ति में विचारों और हितों में अन्तर होने के कारण सभी तथ्यों को अपनी-अपनी दृष्टि से व्याख्यायित करते हैं। आज व्यक्ति की दृष्टि एकपक्षीय और संकुचित हो गई है। यही एकांत दृष्टि विश्वशांति को भंग कर रही है। हर एक व्यक्ति अपने जीवन में सुख-शांति लाने के लिए अपने हितों को साधने के लिए दूसरों के हितों का अपलाप कर उनके जीवन में अशांति फैलाता है। ऐसा करके न तो वह स्वयं शांत रहता है और न ही दूसरे को शांत रहने देता है। आज शांति स्थापना के । सन्मति-तर्क-प्रकरण - 3/70 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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