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संचयवृत्ति को सीमित करने का प्रयत्न व्यक्ति को तनावमुक्त करता है। अतः अपरिग्रह तनावमुक्त करता है एवं परिग्रह तनावयुक्त अवस्था का सूचक होता
परिग्रह का अर्थ - परिग्रह शब्द परि + ग्रहण से मिलकर बना है। 'परि' शब्द का अर्थ विपुल मात्रा में और ग्रहण का अर्थ है प्राप्त करना, संग्रह करना आदि। अतः परिग्रह का अर्थ है, विपुल मात्रा में वस्तुओं का संग्रह करना! दूसरे शब्दों में कहें तो पदार्थों का असीमित संग्रह परिग्रह है। जैनदर्शन के अनुसार, लोभ मोहनीय कर्म के उदय से संसार के कारणभूत सचित्ताचित्त पदार्थों को आसक्तिपूर्वक ग्रहण करने की अभिलाषारूप क्रिया को परिग्रह कहा है। उपासकदशांगसूत्र में व्रती गृहस्थ के परिग्रहपरिमाण व्रत को इच्छापरिमाण व्रत भी कहा गया है।
उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर हम यह कह सकते हैं कि पदार्थों के संचय करने की वृत्ति, आसक्तिपूर्वक संग्रह या संग्रह करने की इच्छा या अभिलाषा, लोभ की प्रवृत्ति आदि परिग्रह है और यही संचय करने की वृत्ति, आसक्ति, इच्छाएँ, आकांक्षाएँ या अभिलाषा आदि नियमतः तनाव उत्पत्ति के प्रमुख कारण हैं।
परिग्रह संचय की वृत्ति है, जहाँ संचय की वृत्ति है, वहाँ इच्छाएँ, आकांक्षाएँ और अपेक्षाएँ हैं। अन्य शब्दों में कहें तो जो अनुकूल प्रतीत होता है, जिसके प्रति पुनः-पुनः भोग की वृत्ति होती है, उसी के लिए संचय किया जाता है और जहाँ संचय होता है, वहाँ राग है और राग तनाव का हेतु है। 'पातजंल योगसूत्र'33 में अपरिग्रह को पाँचवें यम के रूप में स्वीकार किया गया है। कहा है कि -परिग्रह का मूल कारण ममत्त्व, आसक्ति या तृष्णा है। जैनदर्शन के अनुसार
1 लोभोदयात्प्रधान भवकारणाभिएवंड्गपूर्विका सचित्तेतर द्रव्योपादानक्रियैव संज्ञायतेऽनयेति परिग्रह
संज्ञा- प्रज्ञापनासूत्र - 8/725 32 उपसकदशांग - 1/45 " अहिंसासत्यास्तेयब्रह्मचर्यापरिग्रहा यमाः । - पातंजलयोगसूत्र -2/30
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