________________
201
शरीरप्रेक्षा की यह प्रक्रिया अन्तर्मुख होने की प्रक्रिया है और अन्तर्मुख व्यक्ति ही आत्मोन्मुख होता है और आत्माोन्मुख तनावमुक्त होता है।
चैतन्य केन्द्र-प्रेक्षा :
शरीर के प्रमुख तंत्रों में एक तंत्र है – अन्तःस्रावी ग्रंथितंत्र। इन ग्रन्थियों से निकलने वाले स्राव को जीवनरस या हार्मोन कहते है। ये हार्मोन हमारी शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक प्रवृत्तियों का नियंत्रण करते हैं। व्यवहार और हमारी अभिव्यक्ति नाड़ी-तंत्र के द्वारा होती है, किन्तु आदतों का जन्म, आदतों की उत्पत्ति ग्रन्थि-तंत्र में होती है। “मनुष्य की जितनी आदतें बनती हैं उनका मूल जन्म-स्थल ग्रन्थितंत्र ही है।"48 ग्रन्थियों से निकलने वाले हार्मोन ग्रन्थितंत्र ही है। ग्रन्थियों के हार्मोन, तनाव उत्पन्न करने वाली आदतों, आवेशों, वृत्तियों और वासनाओं को अत्यन्त शाक्तिशाली या कमजोर बनाने वाले प्रमुख स्रोत हैं। जैन आचार्य आत्मारामजी म.सा. के अनुसार -"आवेग, क्रोध, मान, माया, लोभ एवं राग-द्वेष आदि ग्रन्थि रूप होते है। हमारी दृष्टि में ये हार्मोन तनावमुक्ति में बाधक या साधक बनते है।49
दार्शनिक, वैज्ञानिक और चिकित्सक सभी एकमत से यह कहते हैं कि इन अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का व्यक्ति की भावधारा और मनोदशा के साथ गहरा संबंध है। डा. एम. डब्ल्यू. काप (एम.डी.) ने अपनी पुस्तक ग्लेण्डस अवर इनविजिबल गाइड्स में लिखा है -"हमारे भीतर जो ग्रन्थियाँ है वें क्रोध, कलह, ईर्ष्या, भय, द्वेष आदि के कारण विकृत बनती है। जब ये अनिष्ट भावनाएँ जागती हैं, तब एड्रिनल ग्लैण्ड को अतिरिक्त काम करना पड़ता है।"50 आत्मा और शरीर के
48. प्रेक्षा ध्यान आधार और स्वरूप प्र. 28 महाप्रज्ञ जी . 49. जैन योग सिद्धांत और साधना पृ. 177 50. प्रेक्षा ध्यान : चैतन्य- केन्द्र प्रेक्षा- पृ. 13
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org