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गतिविधियों से मुक्ति के लिए अपनी चित्तवृत्तियों को केन्द्रित कर नियंत्रित रखना है।
धर्मध्यानी में मुख्य रूप से निम्न लक्षण पाए जाते हैं137 - 1. आज्ञारूचि – धर्मध्यानी व्यक्ति वीतराग प्रभु के बताए मार्ग का अनुसरण
करता है, अर्थात् तनाव उत्पन्न करने वाले तत्त्वों के प्रति उदासीन भाव
रखता है।
2. निसर्गरूचि - स्व स्वभाव में रूचि होना निसर्गरूचि है। तनावग्रस्त
व्यक्ति विभाव दशा में होता है। धर्मध्यानी विभावदशा का त्याग कर स्व
स्वभाव में रमण करने का प्रयत्न करता है। 3. सूत्ररूचि – तनावमुक्ति के लिए उन उपदेशों को ग्रहण करना, जो सही दिशा-निर्देश करते हैं।
4. आगमरूचि - आगम के उपदेशों को सुनकर उन पर चिन्तन-मनन
करना आगमरूचि है।
शुक्लध्यान – यह धर्मध्यान के बाद की स्थिति है। धर्मध्यान के द्वारा तनावग्रस्त व्यक्ति के मन को वासनारूपी विकल्पों से मोड़कर धर्मध्यान में लगाया जाता है। शुक्लध्यान के द्वारा मन को शान्त और तनावमुक्त किया जाता है। इसकी अन्तिम परिणति मन की समस्त प्रवृत्तियों का पूर्ण निरोध है। 138 शुक्लध्यान के चार भेद कहे गए हैं।39 -
137 स्थानंग - 4/66 138 जैन साधना पद्धति में ध्यान - डॉ. सागरमल जैन, पत्र 30 139 (1) स्थानांगसूत्र - 4/69 (2) ध्यानशतक – 78-84
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