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दर्शन का अर्थ -
सामान्यतया दर्शन शब्द का अर्थ 'देखना' है, लेकिन यहाँ दर्शन शब्द का अर्थ मात्र आँखों से देखना नहीं है। उसमें इन्द्रिय-बोध, मन-बोध और आत्म-बोध सभी सम्मिलित है। जीवादि पदार्थों के स्वरूप को देखना, जानना, श्रद्धा करना 'दर्शन' है। उपर्युक्त बोध होने पर ही व्यक्ति इच्छा, आकांक्षा आदि तनाव के कारणों को समझेगा, तत्पश्चात् आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर होगा और फिर एक दिन स्वयं को तनावमुक्त पाएगा। सम्यक् दर्शन से तनावमुक्ति -
सम्यक् दर्शन का मूल अर्थ है -यथार्थ दृष्टिकोण, जो मात्र वीतराग पुरुष का ही हो सकता है। वीतरागता की अवस्था ही मोक्ष की अवस्था है और मोक्ष की अवस्था ही तनावमुक्ति की अवस्था है। जो व्यक्ति राग और द्वेष से युक्त है, वह तनावग्रस्त है और तनावग्रस्त व्यक्ति का दृष्टिकोण भी तनावपूर्ण ही होगा, अर्थात् उसका दृष्टिकोण यथार्थ नहीं हो सकता है। यथार्थ दृष्टिकोण के अभाव में व्यक्ति का व्यवहार तथा साधना सम्यक नहीं हो सकती, क्योंकि गलत दृष्टिकोण जीवन के व्यवहार और ज्ञान को सम्यक् नहीं बना सकता है और जहां व्यवहार और ज्ञान दोनों ही सम्यक् नहीं है, वहाँ तनावपूर्ण स्थिति बन जाती है। मिथ्यादृष्टि से व्यक्ति की आत्मा में राग-द्वेष की उपस्थिति होती है। अतः व्यक्ति को तनावमुक्त होने के लिए सर्वप्रथम अपने दृष्टिकोण को सम्यक् बनाना होगा। 'पर' को 'पर' और 'स्व' को 'स्व' मानना होगा और 'पर' के प्रति ममत्व को समाप्त करना होगा। वस्तुतः जो व्यक्ति सम्यक् दृष्टिकोण से युक्त होता है वही तनावमुक्ति की अवस्था को या मोक्ष की अवस्था को पा सकता है। क्योंकि 'स्व' और 'पर' का भेद जानता है और 'पर' पर ममत्व का आरोपण नहीं करता है। जो अयथार्थता को समझता है, जानता है और उसके
'अभिधानराजेन्द्रकोष, खण्ड-5, पृ. 2425
जैन,बौद्ध और गीता के आचारदर्शनों का तुलनात्मक अध्ययन, पृ. 49
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