Book Title: Jain Dharm Darshan me Tanav Prabandhan
Author(s): Trupti Jain
Publisher: Trupti Jain

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Page 294
________________ . 275 को स्पष्टतया देखने लगता है, उसी प्रकार अन्तर में ज्यों-ज्यों मलिनता समाप्त होती जाती है; तत्त्व-रूचि जाग्रत होती है, त्यों-त्यों तत्त्वज्ञान प्राप्त होता जाता है और उस तत्त्वज्ञान को आत्मसात कर मुक्ति को प्राप्त करता हैं। इसे जैन परिभाषा में प्रत्येकबुद्धो का (स्वतः ही. सत्य को जानने का मार्ग) साधना-मार्ग कहते हैं, जो मोक्ष मंजिल पर पहुंचता है और यह मोक्ष मंजिल ही तनावमुक्ति की अवस्था है। सामान्य व्यक्ति के लिए स्वतः ही यथार्थता को जानना या सम्यक दृष्टि होना सम्भव नहीं है। जब तक व्यक्ति सत्य को जानता नहीं है, वह सन्देहशील रहता है और सन्देह या संशय में होना भी तनाव ही है। संदेहशील या संशयात्मा व्यक्ति तनाव से मुक्त नहीं हो सकता। सत्य की स्वानुभूति का मार्ग कठिन है। सामान्य साधक के लिए दूसरा सरल मार्ग यह है कि जिन्होंने स्वानुभूति से सत्य को जाना है और स्वयं को तनावमुक्त बनाया है, उनकी अनुभूति ने जो भी सत्य का स्वरूप बताया है, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। यह आस्था या श्रद्धा की अवस्था है। आस्था और विश्वास ही अभय प्रदान कर हमें तनावमुक्त बना देता है। सम्यक्त्व के पाँच अंग और तनाव - सम्यक् दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है और मोक्ष की प्राप्ति अर्थात् तनावमुक्ति की अवस्था। तनाव से मुक्ति प्राप्त करने के लिए व्यक्ति को सम्यक् दृष्टिकोण प्राप्त करना होगा और उसके लिए व्यक्ति को सम्यक्त्व के उन पाँचों अंगों को अपनाना होगा जिनसे सम्यग्दृष्टि की उपलब्धि होती है। जब तक साधक इन्हें अपना नहीं लेता है, तनावों से मुक्त नहीं हो सकता है। क्योंकि यही सम्यक्त्व मोक्ष की उपलब्धि कराता है। सम्यक्त्व के वे पांच अंग इस प्रकार हैं - सम - सम्यक्त्व का पहला लक्षण है 'सम' । सामान्यतया 'सम्' शब्द के दो अर्थ हैं - पहले अर्थ में यह समानुभूति है, अर्थात् सभी प्राणियों को अपने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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