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से मुक्ति भी संभव नहीं होगी और आसक्ति से मुक्त होने के लिए सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र की साधना आवश्यक है ।
सम्यग्दर्शन और तनावमुक्ति
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सम्यग्दर्शन और तनावमुक्ति का सह-- सम्बन्ध जानने से पूर्व हमें सम्यक्, दर्शन और सम्यग्दर्शन – इन तीन शब्दों का अर्थ समझना होगा। सामान्य रूप से सम्यक् शब्द यथार्थता या सत्यता का सूचक है । सम्यक् का अर्थ सही समझ है और सही समझ साधक जीवन के लिए आवश्यक है। वस्तु जैसी है वैसी मानना । साधक जीवन का मुख्य लक्ष्य आत्मा के यथार्थ स्वरूप को जानना या मोक्ष की प्राप्ति है और मोक्ष तनावमुक्ति की अवस्था है। जैन- विचारणा यह मानती है कि अनुचित साधन से प्राप्त किया गया लक्ष्य भी अनुचित ही होता है । तनावमुक्त अवस्था पाने के लिए अगर हम भौतिक पदार्थों का अर्थात् 'पर' का सहारा लेंगे तो हम तनावमुक्त नहीं हो पायेंगे। तनाव का मुख्य कारण राग-द्वेष है और राग या द्वेष दोनों ही 'पर' पदार्थों पर होता है। सम्यक् को सम्यक् से ही प्राप्त किया जा सकता है। असम्यक् से जो भी मिलता है वह भी असम्यक् ही होता है। व्यक्ति की यह मिथ्यादृष्टि (असम्यक्ता) ही है कि वह तनावमुक्त या मोक्ष की अवस्था पाने के लिए 'पर' पदार्थ को अपनी साधना का साधन मान लेता है, अतः जैनदर्शन में तनावमुक्त अवस्था की प्राप्ति के लिए जिन साधनों का विधान किया गया, उनका सम्यक् होना आवश्यक माना गया । वस्तुतः ज्ञान, दर्शन, तथा चारित्र का नैतिक मूल्य उनके सम्यक् होने में ही है, तभी वे मुक्ति या निर्वाण के साधन बनते हैं । सम्यक् साधनों से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है, अतः तनावमुक्ति के लिए भी सम्यक् साधनों की अपेक्षा है । सम्यक् साधन ही हमें तनाव से मुक्ति दिला सकते हैं। यदि हमारे ज्ञान, दर्शन और चारित्र मिथ्या होते हैं, तो वे बन्धन का कारण बनते हैं । वस्तुतः तनावपूर्ण जीवन अर्थात् इच्छा और आकांक्षा से युक्त जीवन ही बन्धन है।
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