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स्थानांगसूत्र में शुक्लध्यान के चार आलम्बन बताए गए हैं11 - 1. शांति, 2. मुक्ति (निर्लोभता), 3. आर्जव (सरलता) और 4. मार्दव। डॉ. सागरमल जैन लिखते हैं कि -शुक्लध्यान के ये चार आलम्बन चार कषायों के त्यागरूप ही हैं। 142 वस्तुतः तनाव का मूल कारण कषाय हैं और कषाय का पूर्णतः त्याग ही तनावमुक्ति है। पूर्णतः तनावमुक्ति की अवस्था ही शुक्लध्यान है।
आचारांग में ममत्व का स्वरूप, ममत्व के त्याग एवं तृष्णा पर प्रहार -
यह मेरा धन है, मेरा राज्य है, मेरी वस्तु है ऐसा मानना ममत्व है, ममता है। परिवार या सम्पत्ति के मोह में बंधी हुए व्यक्ति की ममत्व बुद्धि ही व्यक्ति के तनाव का हेतु होती है। आचारांग में लिखते हैं कि -"यह मेरी माता है, मेरी बहन है, मेरा भाई है, मेरा पुत्र है, मेरी पत्नि है, मेरे संगी-साथी हैं, इन्होंने मेरे लिए भोजन, वस्त्र, मकान आदि की व्यवस्था की है, इस प्रकार आसक्त व्यक्ति दिन-रात बिना विचार किए दुष्कर्म करता है। 143 वस्तुतः 'पर', पर 'स्व' का आरोपण ही ममत्व बुद्धि का लक्षण है। प्राणी इस ममत्व भाव के कारण ही संसार में जन्म-मरण करता है। जैनधर्म का यह मानना है कि जन्म-मरण दुःख है। यह दुःख ही तनाव है। व्यक्ति जिस वस्तु को 'मैं' रूप मानता है, या मेरी मानता है, उसका विनाश या वियोग अवश्य ही होता है और जब उस वस्तु का नाश हो जाता है, तो यह मेरापन ही दुःख का या तनाव का कारण बन जाता है। गौतमस्वामी को भी तब तक केवलज्ञान प्राप्त नहीं हुआ, जब तक उन्होंने प्रभु महावीर पर अपनी ममत्वबुद्धि रखी थी, कि यह मेरे गुरू हैं। जब उनकी ममता टूटी तब ही उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया।
141 स्थानांगसूत्र - 4/71 142 जैन साधना पद्धति में ध्यान - डॉ. सागरमल जैन, पृ. 31 143 आचारांग - 2/1/63
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