________________
268
अध्यवसायों को ध्यान कहा जाता है, क्योंकि भावना, अनुप्रेक्षा और चिन्तन को स्थिर करने में ध्यान सहायक है। 164 वस्तुतः ध्यानशतक में भी ध्यान के प्रकार या भेद, ध्यान के लक्षण वही बताए गए हैं, जो स्थानांगसूत्र में कहे गए हैं। अन्तर सिर्फ इतना है कि इसमें सभी ध्यानों की विस्तृत चर्चा की गई है।
आर्तध्यान और रौद्रध्यान को तनावयुक्त होने का कारण कहा है, और धर्मध्यान और शुक्लध्यान को तनावमुक्ति का हेतु बताया है। ध्यानशतक में जिनभद्रगणि लिखते हैं कि -"आर्त और -रौद्रध्यान संसार के कारण हैं और अन्तिम दो ध्यान धर्मध्यान और शुक्लध्यान निर्वाण में सहायक हैं। 165 वस्तुतः जो संसार का कारण है, वही तनावग्रस्तता का कारण है और जो निर्वाण में सहायक तत्त्व हैं वे ही तनावमुक्ति के कारण हैं।
___ ध्यानशतक में धर्मध्यान के वे ही भेद, लक्षण, आलम्बन एवं अनुप्रेक्षा आदि दी गई है, जो स्थानांग में है। साथ ही ध्यानशतक में शुभध्यान अर्थात् धर्मध्यान के पहले अभ्यास के लिए चार भावनाओं को महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है, वे इस प्रकार हैं- 1. ज्ञान भावना, 2. दर्शन भावना, 3. चारित्र भावना और 4. वैराग्य भावना।
वस्तुतः देखा जाए तो ये भावनाएँ भी तनावमुक्ति के साधन हीं है। 'ध्यान से मन की विशुद्धि करता है। 166 'दर्शन से शंका-कांक्षादि दोषों से रहित होता है। 167 चारित्र और भावना से नवीन कर्मों का आस्रव नहीं होता है।168 वैराग्य भाव से पूरित ऐसे व्यक्ति का चित्त सहज स्थिर हो जाता है, अर्थात् वह तनावमुक्त हो जाता है।
16 ध्यानशतक -2 165 ध्यानशतक -5 166 ध्यानशतक -31 167 ध्यानशतक -32 168 ध्यानशतक -33 169 ध्यानशतक -34
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org