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की विस्तृत चर्चा है। जैन परम्परा के ग्रंथों में जहाँ एक ओर राग-द्वेष को तनाव का मूलभूत . कारण बताया गया है, वहीं दूसरी ओर तनावमुक्ति के लिए ध्यान-साधना को एक उचित साधन बताया गया है।
वस्तुतः ध्यान साधन भी है और साधना भी है। मन और इन्द्रियों को नियंत्रण करने की शक्ति ध्यान में ही है। तनावमुक्ति रूपी लक्ष्य की प्राप्ति ध्यान साधना से ही सम्भव है। इस साधना से साध्य को प्राप्त करने का साधन भी ध्यान ही है। ध्यान अगर सही दिशा में हो तो वह तनावमुक्ति की ओर ले जाता है, अन्यथा वह तनावग्रस्तता का कारण बन जाता है। जैनदर्शन के अनुसार आर्त, रौद्र, धर्म और शुक्ल -इन चार ध्यानों में से आर्त और रौद्र ध्यान तो तनावों का कारण है या तनाव रूप ही है, जबकि धर्म और शुक्ल ध्यान तनावों से मुक्ति के हेतु हैं। वस्तुतः शुक्ल ध्यान तो तनाव रहित अवस्था का ही सूचक
है।
स्थानांगसूत्र में न केवल ध्यान के प्रकारों का वर्णन है, अपितु प्रत्येक प्रकार के ध्यान के लक्षण आदि का भी विवेचन दिया गया है।
स्थानांगसूत्र में ध्यान के प्रकार व लक्षण -
___ ध्यान की सभी प्रक्रियाएँ अपनाने योग्य नहीं होती। स्थानांग में चार प्रकार के ध्यान कहे गए हैं। उनमें से प्रथम दो ध्यान मन को एकाग्र तो करते हैं, किन्तु उसे गलत दिशा में ले जाकर तनावग्रस्त बना देते हैं। शेष दो ध्यान अर्थात् धर्म और शुक्ल ध्यान ही व्यक्ति को तनावमुक्त करते हैं। कौन सा ध्यान करने योग्य है और कौन सा ध्यान नहीं करने योग्य है, इसका निर्णय स्थानांगसूत्र में दिए गए ध्यान के प्रकारों एवं लक्षणों के आधार पर स्वतः ही किया जा सकता है। स्थानांगसूत्र में ध्यान के प्रकारों एवं लक्षणों का विवरण इस प्रकार हैं -
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