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3. नानाविध - दोष रौद्रध्यानी हिंसा, झूठ आदि अनेक क्रूर एवं दुष्ट प्रवृत्तियों को अपने तनावमुक्ति का अर्थात् स्वयं के सुख का हेतु मानता है, इसलिए वह नानाविध दोष करता है ।
4. आमरण- - दोष रौद्रध्यानी में आमरण-दोष होता है, अर्थात् वह हिंसा, झूठ आदि पापों का सेवन मृत्युपर्यन्त करता रहता है। तनावमुक्ति की चाह में हिंसा आदि प्रवृत्ति में लगा रहता है, क्योंकि उसके लिए हिंसादि प्रवृत्तियाँ ही तनावमुक्ति या शांति के साधन होते हैं।
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ये चार प्रकार के रौद्रध्यान राग-द्वेष और मोह से युक्त व्याकुल एवं तनावग्रस्त व्यक्ति के होते हैं। जो लक्षण एक रौद्रध्यानी में होते हैं, वही लक्षण तनावग्रस्त व्यक्ति में भी पाए जाते हैं। तनावग्रस्त व्यक्ति रौद्रध्यान करता हुआ दूसरों को पीड़ित तो करता है, साथ ही दूसरों को दुःखी देखकर प्रसन्नता व शांति की अनुभूति भी करता है, किन्तु उसकी ये अनुभूतियाँ अल्पकालिक ही होती हैं और उसकी दृष्टि को दूषित बनाए रखती हैं I
तुलनात्मक दृष्टि से कहें तो इन दो ध्यानों अर्थात् आर्त्तध्यान एवं रौद्रध्यान के आधार पर हम व्यक्ति के तनाव के स्तर को बता सकते हैं । वस्तुतः इन दोनों ध्यानों में ही तनाव का स्तर तीव्र होता है, किन्तु प्रतिक्रिया की अपेक्षा से रौद्रध्यानी स्वयं को व दूसरों को अधिक तनावग्रस्त करता है ।
धर्मध्यान व शुक्लध्यान तनावमुक्ति के हेतु
जैन आचार्यों ने साधना की दृष्टि से केवल धर्मध्यान और शुक्लध्यान को ही ध्यान की कोटि में रखा है। वस्तुतः तनावमुक्ति की विधियों में भी ये ही दो ध्यान उपयोगी हैं। धर्मध्यान करते हुए शुक्लध्यान में प्रवेश किया जाता है।. धर्मध्यान में तनावमुक्त होने के लिए प्रयास प्रारम्भ होता है, धर्मध्यान करते-करते शुक्लध्यान में प्रवेश होता है। शुक्लध्यानी को पूर्णतः तनावमुक्त व्यक्ति कह सकते हैं। यही कारण है कि आध्यात्मिक दृष्टि से, आत्मा के उत्थान के लिए
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