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विवेक बुद्धि नष्ट हो जाती है और विवेक बुद्धि के नष्ट हो जाने से यह पुरूष अपने लक्ष्य या साधना से च्युत हो जाता है, अर्थात् तनावयुक्त अवस्था को प्राप्त हो जाता है। तनावयुक्त स्थिति में व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन खो देता है। विवेक शक्ति के नाश होने से वह अपने स्वरूप अर्थात् आत्मा के निज स्वभाव को प्राप्त नहीं कर पाता है। आत्मा के स्वभाव में आने के लिए अर्थात् तनावमुक्त दशा को पाने के लिए यह आवश्यक है कि व्यक्ति मन को वश में करे, उसे अमन बना दे अर्थात् इच्छा और आकांक्षा रूपी विकल्पों से मुक्त हो जाये। आत्मा जब स्वभावदशा में होती है अर्थात् ज्ञाता-द्रष्टाभाव में स्थित होती है तब मन विकल्प मुक्त होता है अर्थात् मन अमन हो जाता है। यही मन का अमन होना ही तनावमुक्त होना है।
जैन दर्शन के अनुसार सिद्ध आत्मा अमन होती है। वस्तुतः केवली भी समनस्क होते है, किन्तु उनका मन अमन हो जाता है। उसमें कोई विकल्प उठते नहीं, वे राग-द्वेष और मोह से रहित होते है। उनमें इच्छा और आकांक्षा भी नहीं होती है। अतः उनका मन निर्विकल्प या अमन हो जाता है।
उनकी आत्मा भी शुद्ध होती है, वे अपने ज्ञाता-द्रष्टाभाव रूप स्वभाव में ही निमग्न रहते है। कैसा भी बाह्य संयोग मिले वे विभावदशा को अर्थात् विकल्पता को प्राप्त नहीं होते हैं, अर्थात् विभावदशा में नहीं जाते है। उनका विशेषतः विकल्पों में नहीं जाना ही तनावमुक्त रहना है।
___ आत्म परिशोधन की इस प्रक्रिया में सफल होने के लिए विभावदशा के परित्याग के हेतु प्रयत्न करने होंगे। विभावदशा के परित्याग के लिए हमें विकल्पों से बाहर निकलना होगा, तभी व्यक्ति तनावमुक्त दशा को प्राप्त कर सकता है। आचार्य श्रीमद्विजय केशरसूरिजी महाराज ने अपनी कृति 'आत्मशुद्धि' में कहा है -
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