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जोड़ना, या योग करना ही अशरण अनुप्रेक्षा योग साधना है। तनाव उत्पन्न करने के सहायक तत्व धन, पदार्थ और परिवार है। ये सब हमारे अस्तित्व से भिन्न है, इसका ज्ञान अनुप्रेक्षा से होता है। अपनी सुरक्षा अपने अस्तित्व में है । अशरण की
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अनुप्रेक्षा राग-त्याग की साधना है । राग-द्वेष से परे व्यक्ति तनावमुक्त जीवन व्यतीत करता है ।
3. संसार अनुप्रेक्षा यह संसार जन्म मरण का चक्र है। जब तक जन्म-मरण चलता रहेगा, व्यक्ति तनावग्रस्त होता रहेगा । व्यक्ति की संसार के प्रति आसक्ति ही तनाव का कारण है । वह संसार के दुःखों को सहन तो करता है, पर उन दुःखों की जड़ को समाप्त करने का विचार नहीं करता। संसार अनुप्रेक्षा में साधक संसार के दुःखों, जम्न - जरा - मरण की पीड़ाओं, चारों गतियों के कष्ट पर विचार करता है। तनाव बनाने वाले इस संसार से मुक्त होकर मोक्ष की अभिलाषा करता है। यह सम्पूर्ण संसार और संसार के प्राणी एकांत दुःख से दुःखी है, कहीं भी सुख का लेश नहीं है । 1 इस पर विचार करता है । यह संसार ही तनावग्रस्त होने का कारण है और तनावमुक्त अवस्था ही मोक्ष है । भगवान् महावीर के शब्दों में " पास लोए महब्मयं " अर्थात् तू संसार को महाभयानक रूप में देख।°2
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इस प्रकार अनुचिन्तन करने से व्यक्ति में तनावों से मुक्ति और संसार से मुक्ति पाने की प्रबल इच्छा जाग उठती है और वह मोक्ष प्राप्ति के लिए सम्यक् प्रयत्न करता है ।
61. सूत्रकृतांग - 17/11
62. आचारांग सूत्र - 6 / 1
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4. एकत्व अनुप्रेक्षा एकत्व से तात्पर्य है कि भीड़ में भी अकेला होना अर्थात मैं अकेला आया था और अकेला ही जाऊगाँ, शेष सब संयोगजन्य है। जैन धर्म का यह मानना है कि तनाव का मूल कारण राग-द्वेष है और ये दोनों ही 'पर' के कारण होते है। एकत्व अनुप्रेक्षा में 'पर' को 'पर' समझा जाता है और ..
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