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शरीर के प्रत्येक अवयव के प्रति जागरूक रहें। शरीर के चारों ओर श्वेत रंग के प्रवाह का अनुभव करें। शरीर के कण-कण में शांति का अनुभव करें।
पांचवा चरण :- पैर के अंगूठे से सिर तक चित्त और प्राण की यात्रा करें। तीन दीर्घश्वास के साथ कायोत्सर्ग सम्पन्न करें। दीर्घश्वास के साथ प्रत्येक अवयव में सक्रियता का अनुभव करें।
बैठने की मुद्रा में आएं। शरणं सूत्र का उच्चारण करें।
"वंदे सच्च" से कायोत्सर्ग सम्पन्न करें ।
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कायोत्सर्ग से लाभ :- आचार्य भद्रबाहु ने कायोत्सर्ग के पांच लाभ बताये है। 8 1. देहजाड्यशुद्धि :- श्लेष्म आदि के द्वारा देह में जड़ता आती है। कायोत्सर्ग से शरीर में श्लेष्म आदि दोष दूर होते है। चूंकि शरीर एवं मन की शुद्धि से तनावमुक्ति का संबंध है। अतः कायोत्सर्ग की साधना से देह की जड़ता दूर होकर शरीर में स्फूर्ति लाती है, जो शरीर को तनाव मुक्त बनाती है ।
2. मतिजाड्यशुद्धि :- कायोत्सर्ग से शरीर के साथ-साथ मन की प्रवृत्ति केन्द्रित हो जाती है, चित्त एकाग्र होता है, उससे बुद्धि की जड़ता समाप्त होती है। जब बुद्धि की जड़ता समाप्त होगी, तो उससे सही समझ एवं सही सोच-विचार करने की क्षमता बढ़ जाएगी, जो तनावमुक्ति में सहायक होगी।
3. सुख - दुःख तितिक्षा :- कायोत्सर्ग से देह और आत्मा की पृथकता का पूर्ण विश्वास हो जाता है । अतः व्यक्ति का देह के प्रति ममत्व भाव कम होने लगता है। इससे उसमें सुख - दुःख सहन करने की क्षमता बढ़ जाती है और वह दुःख को समभाव से सहन कर अपने मानसिक संतुलन को विकृत नहीं होने देता है । 4. अनुप्रेक्षा :- प्रेक्षा ध्यान के प्रत्येक अनुष्ठान के पूर्व कायोत्सर्ग किया जाता है। कायोत्सर्ग से व्यक्ति अनुप्रेक्षा एवं प्रेक्षा प्रक्रिया को स्थिरतापूर्वक कर सकता
है ।
68. आवश्यक निर्युक्ति - 146
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