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वाला है। क्योंकि कायोत्सर्ग सभी प्रकार के तनाव से मुक्ति देने वाला है। कायोत्सर्ग की पहली निष्पत्ति है --तनाव मुक्ति। .. "कायोत्सर्ग की विधि :- कायोत्सर्ग खड़े रहकर, बैठकर और लेटकर तीनों मुद्राओं में किया जाता है। खड़े रहकर करना उत्तम कायोत्सर्ग बैठकर करना मध्यम कायोत्सर्ग और लेटकर करना सामान्य कायोत्सर्ग है। पहला चरण :-- खड़े होकर कायोत्सर्ग का संकल्प करें। "तत्स उत्तरीकरणेणं पायाच्छित करणेणं, विसोहिकरणेणं, विसल्लीकरणेणं पावाणं कम्माणं निग्धायणट्ठाए ठामि काउसग्गं।"
अर्थात् मैं शारीरिक मानसिक और भावनात्मक तनावों से मुक्त होने के लिए कायोत्सर्ग का संकल्प करता हूँ।
दूसरा चरण :- ताड़ासन करें।
तीसरा चरण :- पीठ के बल लेटे, शरीर को शिथिल छोड़ दे, आंखें बंद, श्वास मन्द, शरीर को स्थिर रखें।
प्रत्येक अवयव में शीशे की भांति भारीपन का अनुभव करें (एक मिनिट) प्रत्येक अवयव में रूई की भांति हल्केपन का अनुभव करें (दो मिनिट)। चौथा चरण :- दाएं पैर के अंगूठे पर चित्त को केन्द्रित करें, शिथिलता का सुझाव दे। अंगूठे का पूरा भाग शिथिल हो जाए, अंगूठा शिथिल हो रहा है, अनुभव करें - अंगूठा शिथिल हो गया है।
इसी प्रकार अंगुली एवं पंजे से लेकर कटिभाग तक फिर बाएं पैर के अंगूठे से कटिभाग तक, फिर पेडू से सिर तक प्रत्येक अवयव पर चित्त को केन्द्रित करें, शिथिलता का सुझाव दें और उसका अनुभव करें। (15 मिनिट)
66. आवश्यक नियुक्ति - 1476 67. जीवन विज्ञान और जैन विद्या प्रायोगिक प्र.-33
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