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वहीं स्मृति रहे, तो मन शांत रहेगा। श्वास---प्रेक्षा से तनाव उत्पन्न करने वाले कषाय शांत होते है, उत्तेजनाएं और वासनाएं शांत होती है। व्यक्ति की यह मानसिक शांति ही उसकी तनाव मुक्ति है। व्यक्ति की तनाव मुक्ति से सामाजिक शांति और सामाजिक शांति से विश्व शाति होगी।"
शरीरप्रेक्षा:
आत्मा के द्वारा आत्मा को देखे इसका अर्थ यही है कि चित्त या मन के द्वारा आत्मा (अपनी वृत्तियों) को देखना। जब हम देखना प्रारम्भ करते है तो सबसे पहले आता है-शरीर। आत्मा सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है। एक अंगुली भी हिलती है तो उसमें आत्मा है जब आत्मा नहीं होती है तो शरीर निर्जीव हो जाता है, स्याद्वादमंजरी में लिखा है "आत्मा सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त है।"43
इसलिए पूर्णतः तनावमुक्त अवस्था को पाने के लिए हमें आत्मा (अपनी चित्तवृत्तियों) का साक्षात्कार करना होगा और आत्मा का साक्षात्कार करने के लिए मन की चंचलता को शांत कर, इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करना होगा, जो कि शरीरप्रेक्षा से ही सम्भव है।
__ शरीरप्रेक्षा आध्यात्मिक प्रक्रिया है साथ ही साथ मानसिक और शारीरिक प्रक्रिया भी है। शरीरप्रेक्षा करने वाला साधक शरीर के प्रति जागरूक हो जाता है। जब शरीर के प्रति सजगता आती है। तो व्यक्ति शरीर से जुड़ी इन्द्रियों पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है और इन्द्रियों पर नियंत्रण ही तनावमुक्ति का मार्ग है।
“जैन आगमों के अनुसार जितने परमाणु या जितने पुदगल बाहर से आत्मा द्वारा ग्रहण किये जाते है, उनको लेने का एकमात्र माध्यम है, हमारा
43. स्याद्वमत्रजरी श्री मल्लिप्रेणसूरिप्रणीता -9 पृ.69 नोट:- श्वास प्रेक्षा की पूर्ण प्रक्रिया के लिए देखें प्रेक्षा ध्यान प्रयोग पद्धति आचार्य महाप्रज्ञ पृ. 13,14
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