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शरीर । "44 "मन और वाणी का भी शरीर से पृथक कोई अस्तित्व नहीं है। बाह्य अस्तित्व एक मात्र शरीर है।"45
शरीर जब प्रतिक्रिया करता है, तो मन को चंचल या अशांत बनाता है । इसलिए तनावमुक्ति के लिए सर्वप्रथम प्रेक्षा की प्रक्रिया अपनाकर आत्मदर्शन करना चाहिए, तनावमुक्ति का अनुभव करना चाहिए । आचार्य महाप्रज्ञजी ने भी कहा है- "ध्यान से स्नायविक तनाव, मानसिक तनाव और भावनात्मक तनाव समाप्त हो जाते है | 46
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शरीर दर्शन के अनेक दृष्टिकोण है। एक कामुक व्यक्ति शरीर को देखता है, उसके रंग, रूप व आकार को देखता है। एक डॉक्टर भी शरीर को देख़ता है उसका भी अपना दृष्टिकोण है । किन्तु तनावमुक्ति के लिए शरीर को साधना की दृष्टि से देखना होता है।
आचारांगसूत्र में भगवान् महावीर ने कहा है – “जो आत्मज्ञानी है वह लोक अर्थात् शरीर के निचले भाग को जानता है, मध्य भाग को जानता है और ऊपरी भाग को जानता है। 17 हमारे शरीर के भी तीन भाग है:
1. उर्ध्वभाग 2. मध्यभाग और 3. अधोभाग
नाभि है मध्यभाग । नाभि के ऊपर का हिस्सा है उर्ध्वलोक और नाभि के नीचे का हिस्सा है अधोलोक | तनाव मुक्त होने के लिए शरीर की रचना को चैतन्य केन्द्रो की दृष्टि से देखना चाहिए, जहाँ हमारे चेतना या ज्ञान के केन्द्र हैं। अपनी चेतना को शरीर में नीचे से ऊपर की ओर ले जाना शरीर प्रेक्षा है ।
इस प्रकार शरीर दर्शन से शरीर के प्रति आसाक्ति समाप्त होती है। जब शरीर से ममत्व हटेगा तो तनाव पैदा ही नहीं होगें ।
44. प्रोक्षा ध्यान शरीर प्रेक्षा- आ. महाप्रज्ञ पृ.31
45. चेतना का अर्ध्वरोहण पृ. 39
46. प्रेक्षाध्यानः- शरीर प्रेक्षा पृ. 29
47. आचारंग सूत्र, अमोलक ऋशि 2/5/9
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