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बीच संचार करने का माध्यम ये ग्रन्थियाँ हैं। इन ग्रन्थियों से ही आदतों का और तनावों का जन्म होता है।
जब कोई अनिष्ट इच्छा जागती है तो ग्रन्थियाँ सक्रिय होने लगती है। इच्छा पूरी नहीं होने पर इन ग्रन्थियों से जो हार्मोन्स निकलते है वे नाड़ी तंत्र से होकर मस्तिष्क में जाते है और हमारे मानसिक सतुलन को विचलित कर देते है। ग्रन्थियों का प्रभाव हमारी भावधारा पर पड़ता है। हमारी भावधारा जैसी होगी उसका प्रभाव ग्रन्थियों पर पड़ेगा। आध्यात्मिक स्तर पर इन ग्रन्थियों को ही चेतना केन्द्र कहा जाता है।
"मनुष्य केवल हड्डी-माँस का ढांचा नहीं है, अपितु भाव प्रधान चेतना युक्त ज्ञानमयी शक्ति है। 51
शक्ति, ज्ञान, भाव आदि के स्थानों को या जिस स्थान से सक्ति एवं विवेक चेतना जागृत की जाती है उस स्थान को चैतन्य केन्द्र कहा जाता है।
प्रत्येक व्यक्ति के अंदर तनाव को पूर्णतः खत्म करने की और उसे उत्पन्न करने की ताकत को क्षीण करने की भी शक्ति होती है। इस शक्ति को विवेक चेतना कहते है। जब तक इस चेतना का जागरण नहीं होता, तब तक व्यक्ति का मन तनावग्रस्त होता है। चैतन्य केन्द्रों की प्रेक्षा के द्वारा इस चेतन शक्ति को जाग्रत किया जाता है, जो व्यक्ति के मानसिक संतुलन को बनाए रखती है। चैतन्य केन्द्र की श्रृंखला में निम्नलिखित केन्द्र हैं, साथ ही उनका स्थान और वे किस अन्तःस्रावी ग्रन्थि के साथ संबंधित हैं, यह भी बताया गया है। 2
51. प्रेक्षाः- एक परिचय, पृ. 14 52. प्रेक्षा ध्यान, चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा पृ. 20
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