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मन का स्वभाव चंचलता भी है, और शांतता भी। चंचलता में तनाव की स्थिति पैदा होती है, तो शांतता में तनावमुक्त स्थिति होती है।
इंसिभासियाई में भी कहा गया है कि चित्त की एकाग्रता ही ध्यान है और जो चित्त की चंचलता है वह चिन्ता है, उसे ही तनाव या क्षाभ कहते है।
बिना एकाग्रता के मन शांत नहीं होता और बिना मानसिक शांति के एकाग्रता नहीं होती। तब प्रश्न उपस्थित होता है -क्या करना चाहिए ? उत्तर है -अपने आप को देखना चाहिए। अपने प्रति सजग होना चाहिए। जब अपना आत्मदर्शन करेंगे और अपने आपको समझेंगे, तभी तनावमुक्त होंगे।
प्रेक्षा-ध्यान की यह पद्धति शरीर से शुरू होकर आत्मा पर समाप्त होती हे इससे तनावमुक्त अवस्था प्राप्त होती है। इसके मुख्य अंग निम्न है।
1. श्वास-प्रेक्षा 2. शरीर- प्रेक्षा 3. चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा 4. अनुप्रेक्षा (भावधारा की प्रेक्षा) श्वास-प्रेक्षा :- "जिसमें वर्ण है, रस है और स्पर्श है वह पुदगल है, वह पौद्गलिक वस्तु है। श्वास में ये चारों लक्षण पाए जाते है, इसलिए श्वास पौदलिक है।"39
जैसे हमारी भावधारा होगी वैसी गति से श्वास हमारे भीतर जाएगी। इस संदर्भ में भगवतीसूत्र का उदाहरण प्राणायाम की चर्चा के संदर्भ में दे चुके हैं। भगवान् महावीर ने भी यही कहा है कि जब हमारी भावधारा शुद्ध होती है, तो हमें इष्ट गंध, रस, वर्ण, और स्पर्श होता है और जब भावधारा अशुद्ध होती है, नकारात्मक सोच होती है तो अनिष्ट गंध, रस, वर्ण, और स्पर्श की अनुभूति
37. इसिभासियाई-22/14 38. प्रेक्षा-ध्यान - आधार और स्वरूप पृ. 18 39. महावीर का स्वास्थ्य शास्त्र-आचार्य महाप्रज्ञ-पृ.70
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