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योगकुण्डल्यूपनिषद में लिखा है - "भस्त्रिका प्राणायाम से कण्ठ की जलन मिटती है, जठरागिन प्रदीप्त होती है, कुण्डलिनी जागती है। यह प्रक्रिया पापनाशक तथा सुखदायक है ।
प्रेक्षा ध्यान- आधार और स्वरूप:
तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य श्री महाप्रज्ञ ने जैन आगमों का मंथन करके ध्यान की एक नयी प्रक्रिया 'प्रेक्षा-ध्यान' को प्रस्तुत किया है।
'प्रेक्षा' शब्द 'ईध धातु से बना है। इसका अर्थ है – गहराई से देखना, अथवा गहराई मे उतर कर देखना। देखना सामान्य, आँखों से किया जाता है। किन्तु प्रेक्षा में देखना अपने अन्तरचक्षु एवं मन के द्वारा होता है।
जैन-साधना पद्धति में ध्यान की परम्परा तो थी, किन्तु आगमों में उसकी कोई विधि मिलती ही नहीं है। जैन आगमों में प्रेक्षा शब्द प्रयुक्त है। दशवैकालिक सूत्र में कहा गया है -"संपक्विए अप्पगमप्पएंण"- आत्मा के द्वारा आत्मा की संप्रेक्षा करो।।* तनावमुक्ति के लिए सबसे पहले मन में उठ रहे राग-द्वेष कषाय आदि को देखना आवश्यक हैं, जब तक हम इन्हें देखेंगे नहीं, जानेंगे नहीं, कि हमें क्रोध आ रहा है, लोभ हो रहा है, मोह बढ़ रहा है या द्वेष बढ़ रहा है, तब तक तनावों के कारणों को नहीं जान पाएंगे और व्यक्ति तनावग्रस्त होता जाएगा। आत्मा के द्वारा आत्मा को देखों, मन के द्वारा मन को देखो, स्थूल चेतना के द्वारा सूक्ष्म चेतना को देखों, –यही 'देखना' ध्यान का मूल तत्व है।
जानना, देखना, चेतना का लक्षण है। भगवान् महावीर ने साधना के जो सूत्र दिए हैं, उनमें जानों और देखों, यही मुख्य है। तनावमुक्ति के लिए ये महत्वपूर्ण सूत्र है। देखने की यह प्रक्रिया शरीर से प्रारम्भ होकर सूक्ष्म मन या
33. योगाकुण्डल्यूपनिषद-38 34. दशवैकालिक सूत्र -12/571
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