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उसे माया या कपट वृत्ति का त्याग करना होगा और अपने जीवन व्यवहार में सरलता और सहजता लानी होगी ।
लोभ
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लोभ शब्द लुभ् + धञ् के संयोग से बना है, जिसका अर्थ लोलुपता, लालसा, लालच, अतितृष्णा आदि है। 84 धन आदि की तीव्र आकांक्षा या गृद्धि लोभ है।85 बाह्य पदार्थों में जो 'यह मेरा है' - इस प्रकार की अनुराग बुद्धि का होना ही लोभ कहलाता है। 86
लोभ एक मनोवृत्ति है। यह ऐसी मनोवृत्ति के जिससे मन में रहे हुए सारे गुण (विवेकादि) या बुद्धि की कार्य करने की क्षमता या निर्णय क्षमता को नष्ट कर देती है। लोभ कषाय को क्रोध, मान व माया कषायों का जन्मदाता भी कह सकते हैं, क्योंकि जब लोभ या लालच होता है तो उसकी पूर्ति करने के लिए कभी क्रोध का तो कभी मान का और कभी माया का सहारा लेना ही पड़ता है । जब मन इन कषायों से युक्त होता है तो नियमतः वह तनाव उत्पन्न करता है । ऐसे में तनाव का स्तर भी तीव्रतम होता है। लोभ के उदय से चित्त में पदार्थों की प्राप्ति के लिए वासना उत्पन्न होती है। 7 यह वासना जब तक पूरी नहीं होती, व्यक्ति का मन विचलित रहता है। लोभ का स्वरूप बताते हुए आचारांगसूत्र में कहा गया है - सुख की कामना करने वाला लोभी बार-बार दुःख को प्राप्त करता है। प्रशमरति में लोभ को सब विनाशों का आधार, सब व्यसनों का राजमार्ग बताया है। 89
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' संस्कृत - हिन्दी कोश, भारतीय विद्या प्रकाशन, वाराणसी, पृ. 886
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अनुग्रह प्रवणद्रव्याधभिकाड क्षावेशो लोभः । - राजवार्तिक, 8/9/6/574 /32
'ब्राह्मार्थेषु ममेदं बुद्धिर्लोभः । - धवला, 12/4
87 अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग-6, पृ. 755
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* सहट्ठी लालप्पभाणे सएण दुक्खेण मूढ़े विप्परियासमुवेति... । - आचारांगसूत्र, अ.2, उ.6, सु. 151 89 सर्व विनाशा श्रायिण ........ । – प्रशमरति, गाथा - 29
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