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मृत्यु के घाट उतारा जाए तो ऐसी स्थिति में वह स्वयं की सुरक्षा के लिए उनके अहित का इच्छुक न होते हुए भी उन डाकुओं को मारने में प्रवृत्त होता है।
उपर्युक्त लक्षणों के आधार पर हम यह भी कह सकते हैं कि तेजो लेश्या वाला व्यक्ति हिंसक कार्य या दुष्ट प्रवृत्ति भले ही न करे पर इच्छाओं, आकांक्षाओं के कारण तनावग्रस्त तो रहता है। 5. पद्म लेश्या -
इस लेश्या वाले व्यक्ति की मनोवृत्ति में पवित्रता की मात्रा तेजो लेश्या से कुछ अधिक होती है। ऐसा व्यक्ति शुद्ध भावना वाला होता है। सामान्यतया वह व्यक्ति प्रायः तनावों से मुक्त रहता है और पूर्णतः तनावमुक्ति के लिए अग्रसर होता है। उसका मानसिक संतुलन बना रहता है। इस मनोदशा में तनाव उत्पन्न करने वाले क्रोध, मान, माया, लोभ, क्रूरता, दुष्ट प्रवृत्ति आदि कारक बहुत कम होते हैं। डॉ. सागरमल जैन लिखते हैं कि -"इस मनोदशा में क्रोध, मान, माया, लोभ रूप अशुभ मनोवृत्तियाँ अतीव अल्प अर्थात् समाप्त प्रायः हो जाती हैं। 122
तनाव उत्पन्न करने वाले ये चार घटक जब अतिव अल्प हो जाते हैं, तब व्यक्ति का जीवन आत्मिक संतोष एवं शांति से व्यतीत होता है, उसे न तो किसी से भय होता है और न ही किसी से घृणा। उसमें त्यागशीलता, परिणामों में भद्रता, व्यवहार में प्रामाणिकता, कार्य में ऋजुता, अपराधियों के प्रति क्षमाशीलता, साधु-गुरूजनों की पूजा-सेवा में तत्परता के गुण होते हैं जो पद्म लेश्या के लक्षण हैं।123 पद्म लेश्या वाले व्यक्ति के मन में प्राणी मात्र के प्रति भी वात्सल्य भाव व करूणा होती है। वह अल्पभाषी, उपशांत एवं जितेन्द्रिय होता है। 124 जिसके फलस्वरूप व्यक्ति तनावमुक्त एवं मोक्ष अवस्था प्राप्त करने की
122 जैन, बौद्ध और गीता के आचारदर्शन का तुलनात्मक अध्ययन, भाग.1, डॉ. सागरमल जैन, पृ. 516 123 गोम्मटसार, जीवकाण्ड - 516 124 उत्तराध्ययनसूत्र - 34/29-30
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