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विधि - आसन पर सुखपूर्वक बैठे। बाएँ पैर की एड़ी को गुदा एवं मूत्रेन्द्रिय के मध्य रिक्त स्थान पर लगाएँ। दाएं पांव को उठाकर बाएँ पैर के ऊपर वाले टखने पर टिकाएँ। भेरुदण्ड सीधा रहे। हाथ ब्रह्ममुद्रा में नाभि के पास टिकाएं।
समय -- एक मिनट से धीरे-धीरे सुविधानुसार बढ़ाएं।
लाम – काम-शक्ति विजय, चित्त-वृत्ति निरोध, वीर्य-शुद्धि, शक्ति जागरण, सुषुम्ना में प्राण का संचार होने से व्यक्ति ऊर्ध्वरेता बनता है।
लेटकर किये जाने वाले आसन
1. कायोत्सर्ग :___ शरीर को शिथिल और तनाव मुक्त करें। इस स्थिति को शव की तरह होने से शवासन भी कहते हैं, किन्तु कायोत्सर्ग और शवासन में मौलिक अन्तर है। बाहर से दोनों क्रिया समान दिखाई देती है किन्तु शव आसन मुर्दे की तरह जड़वत होने की अवधारणा प्रदान करता है जबकि कायोत्सर्ग में शरीर का विसर्जन अर्थात् शरीर के प्रति जो ममत्व और पकड़ है, उसे छोड़ना होता है। चैतन्य को निरन्तर जाग्रत रखना होता है।
त
श्वास प्रश्वास पर चित्त को एकाग्र कर प्रत्येक अवयव को शिथिलता का सुझाव देते हैं। शिथिलता का अनुभव करते हैं। कायोत्सर्ग लेटकर, बैठकर और खड़े-खड़े भी किया जा सकता है। आरम्भ में लेटकर कायोत्सर्ग करने में
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