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से कुछ ऊपर उठे हुए रखने पड़ते हैं तथा जंघा और उरू में भी कुछ दूरी रखनी पड़ती है। दूसरा है आम्रकुब्जासन - इस आसन में भी पूरा शरीर तो पैरों के पंजों पर रखना पड़ता है, घुटने कुछ टेढे रखने होते है, शेष शरीर का सम्पूर्ण भाग सीधा रखना पड़ता है।
आचार्य हरिभद्र सूरि के जैन योगशतक की योगविंशिका आदि ग्रन्थों में योग के भेदों में ठाण (स्थान) का अर्थ आसन शब्द से लिया है। इसमें पद्मासन, पर्यकासन, कायोत्सर्ग, आदि का समावेश है।
प्राणायाम
योग के छ: अंग कहे गये है। "उनमें से एक प्राणायाम भी है। योगचुडामणि उपनिषद् में इन छ: अंगों के नाम इस प्रकार है -आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार धारणा, ध्यान और समाधि । 26
प्राणायाम योग की ही एक विधि है। प्राणायाम से प्राण-शक्ति सम्प्रेरित होकर शरीर के अंग प्रत्यंगो में फैलती है और उन्हें स्वस्थ एवं बलवान बनाता है। "आसन-प्राणायाम” नामक पुस्तक में लिखा है कि यदि विधिपूर्वक प्राणायाम किया जाए तो तनाव से उत्पन्न अवसाद आवेश, आत्मा हीनता और उन्माद जैसे मनोविकारों से मुक्ति मिलती है। प्राणायाम की विधि इनके उपचार में भी प्रयुक्त होती है।"
वर्तमान युग में तनाव से मुक्ति के लिये व्यक्ति दो वस्तुओं का प्रयोग करते हैं। पहली नींद की गोलियों और दूसरे मादक द्रव्य। कालान्तर में ये वस्तुएं व्यक्ति की आदत बन जाती है और इनसे न केवल व्यक्ति के व्यहार में
24. दशाश्रुतस्कंध- बही सातवी दशा, मधुकरमुनि पृ. 65 25. जैन योग ग्रंथ चतुष्टय :- योग-विशिका सुत्र-2 पृ. 267 26. योगचुडामनि उपनिषद्- गाथा -2 27. आसन- प्राणायाम से आधि व्याधि निवारण पृ. 161
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