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लाम - मत्स्यासन से गर्दन, सीना, हाथ पैर, कमर की नाड़ियों के दोष दूर होते है। आंख, कान, टांसिल, सिरदर्द से मुक्ति मिलती है। इन अवयवों में रक्त अधिक मात्रा में पहुंचने से शक्ति मिलती है। इससे सीना चौड़ा होता है। श्वास प्रश्वास गहरा व लम्बा होने से प्राण शक्ति विकसित होती है। शरीर में स्फूर्ति और स्थिरता आने लगती है।
मन की शुद्धि होने से मन की एकाग्रता बढ़ती है। ब्रह्मचर्य में सहायक बनता है। कमर दर्द, स्वप्न दोष, स्नायु दौर्बल्य, गर्दन व शिर-शूल से मुक्ति मिलती है।
जैन परम्परा में आसनों का वर्णन:
जैन ग्रंथों में आसनों का वर्णन ध्यान के लिए किया गया है। ध्यान करने के लिए शरीर का स्थिर होना अनिवार्य है और शरीर को स्थिर होने के लिए किसी एक आसन का चुनाव किया जाता है।
आसनों के संबंध में जैन आचार्यों की मूलदृष्टि यह है कि जिन आसनों से शरीर और मन पर तनाव नहीं पड़ता हो, ऐसे सुखासन ही ध्यान के योग्य है। जिन आसनों में व्यक्ति सुखपूर्वक लंबे समय तक रह सकता है तथा जिनके कारण उसका शरीर स्वेद को प्राप्त नहीं होता है, वे ही आसन ध्यान के लिए एवं तनावमुक्ति के लिए श्रेष्ठ है।” सामान्यतया जैन परम्परा में पद्मासन और खड्गासन ही ध्यान के अधिक प्रचलित आसन रहे है। किन्तु महावीर के द्वारा गोदुहासन में ध्यान करके केवल ज्ञान प्राप्त करने के भी उल्लेख है।
17. ज्ञानार्णव-28/11 18. ज्ञानार्णव- 28/11 19. "गोदोहियाए उक्कुडयनिलिज्जाए" कल्पसूत्र 120
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