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सुविधा रहती है । लेटकर शिथिलता सधने पर बैठकर और खड़े-खड़े कायोत्सर्ग का अभ्यास किया जा सकता है।
विधि लेटकर कायोत्सर्ग करने के लिए शरीर को पीठ के बल लेटा
दें। दोनों हाथों को शरीर के समानांतर फैलाएँ । हथेलियां आकाश की ओर खुली रखें। दोनो पैरों के बीच एक फुट का फासला रखें। शरीर को ढीला छोड़ दें ।
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दाहिने पैर के अंगूठे से लेकर सिर तक प्रत्येक अवयव पर चित्त को क्रमशः केन्द्रित करें। शिथिलता का सुझाव दें ।
शरीर शिथिल हो जाए ।
शरीर शिथिल हो रहा है ।
अनुभव करें शरीर शिथिल हो गया है।
शरीर में शिथिलता के साथ चैतन्य का निरन्तर अनुभव करें।
समय
एक मिनट से पांच मिनट तक। साधना में विकास की दृष्टि से 45 मिनट का अभ्यास किया जा सकता है। श्वास-प्रश्वास मंद और शांति रखें ।
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लाभ शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक तनावों से मुक्ति प्रदान करता है। भगवान महावीर ने कायोत्सर्ग को समस्त दुःखों से मुक्ति प्रदान करने वाला बताया है- सव्व दुक्ख विमोक्खणं काउस्सग्गं । प्रत्येक अवयव में स्फूर्ति उत्पन्न होती है। कायोत्सर्ग से देह एवं बुद्धि की जड़ता नष्ट होती है। एकाग्रता बढ़ती है। कलह उपशान्त होता है । कायोत्सर्ग से विघ्न और बाधाएँ दूर होती है ।
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2. मत्स्यासन :
सर्वांगासन, हलासन के तुरन्त पश्चात् मत्स्यासन किया जाता है। यह आसन मत्स्य (मछली) की आकृति से मिलता है, अतः इस मत्स्यासन कहा गया
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