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7. ब्रहाचर्यासन :
पहला प्रकार -
दोनों पैरों को फैलाकर बैठे, घुटनों को मोड़ें। पादतल को एक दूसरे से मिलाएं, घुटनों पर हाथ रखें, जिसे भूमि पर घुटने लगाने में कठिनाई महसूस हो रही हो तो धीरे-धीरे नीचे ले जाएं, ऊपर उठाएं। यह क्रिया पद्मासन की सिद्धि एवं लम्बे समय तक ध्यान के अभ्यास के लिए उपयोगी है।
दूसरा प्रकार -
पैरों को सीधा सम्मुख फैलायें। हथेलियों को शरीर के पार्श्व में स्थापित करें। मेरुदण्ड, ग्रीवा समकोण में सीधा रहे। इस दण्डासन भी कह सकते है। शरीर की आकृति दण्ड जैसी बन जाती है।
तीसरा प्रकार -
सिद्धासन में ठहरें। बाएं पांच की एडी मलद्वार के निकट शुक्र वाहिनी नाड़ी पर स्थापित करें। दायें पांव को बायें पैर पर रखें। बायें पैर के टखने पर दाहिने पैर का टखना आ जाए। पैर के पंजे, नितम्ब और पिंडलियों के बीच आ जाते है। मूल बन्ध कर पूरक करें। शक्ति केन्द्र और स्वाथ्स्य केन्द्र मल एवं मूत्र के स्थान को आकुंचित कर मन में दृढ़ संकल्प करें कि वीर्य ऊर्जा रूप में रूपांतरित होकर मस्तक की ओर गति कर रहा है। अपान की शुद्धि हो रही है।
समय - पांच मिनट से आधा घण्टा।
लाभ - ब्रह्मचर्य में सहायक, वासना क्षय, सौम्य भाव। चौथा प्रकार -
ब्रह्मचर्य की साधना के लिए वजासन का यह प्रकार उपयोगी है। इस आसन से वज्र नाड़ी पर दबाव पड़ने से वीर्य शुद्धि होती है।
विधि - दोनों घुटने मोड़कर पीछे पैरों को नितम्ब से पार्श्व में स्थापित करें। नितम्ब और मल द्वारा के पास का भाग भूमि से सटा रहेगा। हाथों को घुटनों के ऊपर रखें। मूल बन्ध लगायें। वीर्य नाड़ी पर संकल्पपूर्वक मन को
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