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5. गोदुहासन :
गाय को दुहने की मुद्रा बनने से इसे गोदुहासन कहा गया है। इस आसन में भूमि से शरीर का अत्यल्प स्पर्श रहता है। भगवान् महावीर को केवलज्ञान गोदुहासन में ही हुआ था। गोदुहासन निद्रा विजय और सजगता के लिए उपयोगी है।
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विधि - आसन पर पंजों के बल बैठें। घुटनों को मोड़ें। दूध दुहने के बर्तन को घुटने के बीच रखने से जो स्थिति बनती है वैसी मुद्रा बन जाएगी। दोनों हाथों की मुट्ठी बन्द कर दोनों घुटनों पर हाथ स्थापित करें। मुट्ठी बन्द करते समय अंगूठा अन्दर रहेगा। मुट्ठी की कनिष्ठा अंगुली वाला हिस्सा घुटने पर रहेगा।
समय और श्वास प्रश्वास –'आधा मिनट से पांच मिनट तक प्रतिदिन अभ्यास से बढ़ा सकते है। आध्यात्मिक विकास एवं चैतन्य जागरण की दृष्टि से आधा घण्टे से तीन घण्टे तक भी अभ्यास किया जा सकता है।
लाभ - चित्त की स्थिरता। ज्ञान की निर्मलता। अपान वायु की शुद्धि । पैर व स्नायुओं की दुर्बलता दूर होती है। कब्जी दूर होती है। भावना की विशुद्धि एवं पाचन तंत्र सक्रिय होता है।
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