________________
180
रहता है। इस आसन में पैर कमल के पत्तों की तरह लगते है, इसलिए इसे पद्मासन कहा गया है। पद्मासन की मुद्रा में अनेक आसन किये जाते है जिन्हें स्वतंत्र आसनों के रूप में भी स्वीकार किया गया है -- बद्धपद्मासन, योगमुद्रा, उत्थित पद्मासन, तुलासन, कुकुटासन, गर्भासन इत्यादि।
विधि - आसन पर पैर फैलाकर बैठे। दांये पैर को घुटने से मोड़कर इस प्रकार बायीं साथल पर रखें कि हाथों की मुद्रा चित्र की तरह ब्रह्म मुद्रा में भी रखी जा सकती है। एड़ी नाभि के पास के हिस्से की साथल पर इस प्रकार स्थापित करें ताकि एड़ी नाभि को स्पर्श करें। हथेलियां आकाश की ओर इस प्रकार खुली रखें कि अंगूठे और तर्जनी के अगले पौर मिले रहे। शेष अंगुलियां परस्पर मिली हुई स्थिर रखें। गर्दन सीधी रहे। ठुड्डी हंसली से चार अंगुल ऊपर स्थिर रखें। दृष्टि नासाग्र पर रहे। श्वास दीर्घ और शान्त रहे।
समय - एक मिनट से आधा घण्टा। प्रति सप्ताह तीन-तीन मिनट बढ़ायें। जिनसे पद्मासन नहीं लगता हो, वे अर्द्धपद्मासन अर्थात केवल एक पैर के पंजे को दूसरी जंघा पर रखकर अर्द्ध पद्मासन का अभ्यास करें। पद्मासन की सिद्धि के लिए तीन घंटे तक इसका अभ्यास किया जा सकता है।
लाभ – मन की एकाग्रता बढ़ती है। मेरुदण्ड एवं गर्दन सीधी रहती है। जिससे प्राण के प्रवाह को ऊर्ध्वगामी बनने में सहायक मिलती है। यह आसन
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org