________________
. 181
ब्रह्मचर्य साधना की दृष्टि से उपयोगी है। हाथ के अंगूठे और तर्जनी अंगुली पर दबाव पड़ने से ज्ञान तन्तु सक्रिय होते है। अतः इसका नाम ज्ञान मुद्रा है।
4. तुलासन :
__ इस आसन को करते समय शरीर तुला की तरह संतुलित होता है। पूरे शरीर को तुला में तोल रहे हों, ऐसा प्रतीत होता है, अतः इसे तुला आसन के नाम से पुकारा जाता है। उकडूं बैठे। एड़ियों को ऊपर उठाकर पंजों पर ठहरें। घुटने को नीचे झुकायें। शरीर का संतुलन पंजों पर बने। एक पैर को दूसरे पैर की जंघा के आगे घुटने पर रखें। हाथ घुटने के पास रखें और एक पांव पर संतुलन बन जाए, तब हाथ जोड़ लें। मन को श्वास पर केन्द्रित करें या किसी एक बिन्दु पर टिकायें। शीघ्रता न करें। संतुलन से ही यह आसन सिद्ध होता
समय - एक मिनट से तीन मिनट।
लाभ - धातु दोषों में लाभप्रद, पैर की अंगुलियों की सक्रियता, मन की एकाग्रता और पैरों की गति में विकास।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org